Book Title: Akaal ki Rekhaein
Author(s): Pawan Jain
Publisher: Garima Creations

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Page 14
________________ अकाल की रेखाएँ | 12 प्रातः काल जब सम्राट चन्द्रगुप्त शयनकक्ष से बाहर आये, तो उन्हें राजकीय उद्यान का माली दिखा। । कपाल सम्राट की जय हो। /अरे! ये क्या! आम. अमरुद. सेब परन्त स्वामी! ये फल स्वीकार कर तो अभी मौसम ही नहीं... कहाँ से लाए? हम पर कृपा करें। २मका स्वामी ! यही निवेदन करने आया हूँ, हमारे उपवन में भद्रबाहु नाम के महर्षि पधारे हैं, उन्हीं के माहात्म्य से ये फल-फूल... । अच्छा! तब तो निश्चित ही हमारे महान पुण्य का उदय हुआ है, अवश्य उनके दर्शन से हम धन्य होंगे...। ___और जङ्गल में पहुँचकर मुनिराज के दर्शन कर रात्रिकालीन स्वप्न का फल जानने की जिज्ञासा प्रगट की। < राजन! ये स्वप्न इस देश में अत्यन्त । बुरे समय का सूचक है। ये दुर्दिन... - -

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