Book Title: Akaal ki Rekhaein
Author(s): Pawan Jain
Publisher: Garima Creations

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Page 17
________________ ॐ अकाल की रेखाएँ / 15 आप लोग ध्यान से जरा मेरी बात सुनें! यद्यपि आप समर्थ हैं तो भी दुर्भिक्ष स्थल पर संयमीजनों का संयम नहीं पलता, अतः हम दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान कर रहे हैं । IN T हे दयानिधे ! पुण्योदय से हमारे पास नौ वर्षों तक यथेच्छ दान देने की सामर्थ्य है । आपके चरणों की सौगन्ध, जिनशासन की प्रभावना में सब कुछ न्यौछावर.... जब श्रावकों ने भद्रबाहु को जाते देखा तो वे रामल्य व स्थूलभद्रादि साधुओं से प्रार्थना करने लगे । हे दयासिन्धु ! अब आप ही हम पर कृपा कीजिए, आपके बिना तो हम अनाथ हो जायेंगे । ठीक है, आप लोगों का अत्यधिक आग्रह है तो हम रुक जाते हैं I भद्रबाहु की आज्ञा न मानकर, गृहस्थों के लोभ में पड़कर, स्थूलभद्रादि ने यह ऐतिहासिक भूल की... जिसके परिणामस्वरूप थोड़े ही समय बाद जैनधर्म दो भागों में विभक्त हो गया - दिगम्बर और श्वेताम्बर ।

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