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अकाल की रेखाएँ / 8 | भद्रबाहु के वापस घर आने का समाचार मोहल्ला-पड़ोस में फैल गया। अरे ! तूने कुछ सुना, काफी वर्षों पूर्व भद्रबाहु) इतना योग्य, सदाचारी विद्वान् पुत्र पाकर भी । को एक दिगम्बर जैन साधु ले गये थे, अब । ( माता-पिता खुश न हों... क्या सोने में जड़ा रत्न) वह आ गया, सोमश्री तो अब बहुत
सबको अच्छा नहीं लगता? खुश है।
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__ॐ नमः मितिभ्यः ।
वीतरागी तत्त्वज्ञान की विशेष प्रभावना हेतु भद्रबाहु एक दिन राजा पद्मधर के दरबार में गया। आओ द्विजोत्तम! हमारे राजपुरोहित के विद्वान् । राजन्! अपने सत्स्वरूप भगवान आत्मा पुत्र! तुम्हारा सभा में सत्कार है।
का आदर ही सच्चा सत्कार है।
कल्याणमस्तु राजन्!
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राजा ने भद्रबाहु की धर्मोपदेश देने की योग्यता से प्रभावित होकर वीतरागी तत्त्वज्ञान का लाभ लिया और वस्त्राभूषण से उसका विशेष सम्मान किया।
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