Book Title: Agam Suttani Satikam Part 15 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 397
________________ ३९४ निशीथ-छेदसूत्रम् -१-५/३१५ मूः (३१५) जे भिक्खू सचित्त-रुक्ख-मूलंसि ठिच्चा ठाणं वा सेजं वा निसीहियं वा तुयट्टणं वा चेएइ, चेएतं वा सातिञ्जति ॥ चू-ठाण काउस्सग्गो, वसहि निमित्तं सेज्जा, वीसम-ट्ठाण-निमित्तं निसीहिया। [भा.१९०९] सच्चित्त-रुक्ख-मूले, ठाण-निसीयण-तुयट्टणं वा वि। जे भिक्खूचेतीते, सो पावति आणमादीणि॥ [भा.१९१०] हत्थादि पायघट्टण, सहसाऽवत्थंभ अहवऽनाभोगा। गातुम्हा उस्सासे, खेलादिविगिचणा जंच॥ [भा.१९११] अडिंव दारुगादी, सउणग-परिहार-पुप्फ-फलमादी। जीवोवघात देवत-तिरिक्ख-मनुया भवे दुट्ठा॥ [भा.१९१२] असिवोम-दुट्ठ-रोधग, गेलन्नऽद्धाण संभम भए वा। वसधीवाधातेण य, असती जतणा यजा जत्थ ॥ चू-असिवेण गहिता अन्नत्थ वसहिं अलभंता रुक्खमूले अच्छंता जा जा रुक्खाओ छाया निग्गता तत्थ ठायंति, रुक्खमूले ठिता कागादी निवारेंति, पडमंडवं वा करेंति॥ सेसेसु इमं वक्खाणं[भा.१९१३] रायदुट्ठ-भए वा, दुरूहणा होज्ज छादणट्ठाए। अहवा वि पलंबठ्ठा, सेसे ठाही पलंबट्ठा। चू-“वसहिवाघाएण' अस्य व्याख्या[भा.१९१४] इत्थी नपुंसको वा, कंधारो आगतो त्ति निग्गमणं । सावय मक्कोडग तेन वाल मसगाऽयगरे साणे॥ चू-गामबहिट्ठा देवकुले ठिताण सुन्नधरे इत्थी नपुंसगोवा उवसग्गेति, खंधावारोवाआगतो तत्थठितो, दीविगादिसावयंवा पइट्ट, तत्व पतितं विगाले कहियं, मक्कोडगा वाराओउमुआणा, तेनगा वा वा रातो आगच्छंति, सप्पो व राति उवसग्गेति, मसगा वा राओ भवंति, अयगरो वा राओ आगच्छति, साणो वा राओ पत्तए अवहरति । एतेहिं वसहिवाघातेहिं निग्गता अन्नवसहिं अलभंता सचित्तरुक्खमूले ठाएज्जा ।। इमा जयणा[भा.१९१५] अपरिग्गहम्मि बाहिं, भद्दगपंते वऽणुन्नविय बाहिं। अपरिग्गहतो भद्दे वि, अंतो पंते ततो अंतो॥ मू. (३१६) जे भिक्खू सचित्त-रुक्ख-मूलंसि ठिच्चा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, आहरेंतं वा सातिज्जति ॥ [भा.१९१६] सच्चित्त-रुक्ख-मूले, असनादी जो उ भुंजए भिक्खू । सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्त-विराधनं पावे॥ मू. (३१७) जे भिक्खू सचित्त-रुक्ख-मूलंसि ठिच्चा उच्चार-पासवणंपरिहवेइ, परिहवेंतं वा सातिजति॥ [भा.१९१७] सच्चित्त-रुकख-मूले, उच्चारादी आयरेइ जो भिक्खू । सो आणा अणवत्थं, विराधनं अट्ठिमादिहिं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484