Book Title: Agam Suttani Satikam Part 15 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 475
________________ [8] (१४) जीवाजीवाभिगम- * प्रतिपत्तिः /* उद्देशकः / मूलं खा भागभभां ॐ৮तत्र विभागो र्या छे तो पक्ष समश भाटे प्रतिपत्तिः पछी भेड पेटाविलासि नोधनीय छे. }म प्रतिपत्ति -३- मां नेरइय, तिरिक्खजोणिय, मनुष्य, देव सेवा भार पेटाविभागो 43 छे. तेथी तिपत्ति / (नेरइय आदि) / उद्देशकः / मूलं ये रीते स्पष्ट अलग पाडेला छे, श्रेष्ठ रीते दृशभी प्रतिपत्ति ना उद्देशक : नव नथी पर ते पेटाविभाग प्रतिपत्तिः नाभे ४ छे. (१५) प्रज्ञापना - पदं / उद्देशकः /द्वारं/मूलं पदना पेटा विभागभांडयां उद्देशकः छे, ज्यां द्वारं छे पक्ष पद-२८ना पेटा विभागमा उद्देशकः અને તેના પેટા વિભાગમાં દારૂં પણ છે. (१६) सूर्यप्रज्ञप्ति - प्राभृतं/प्राभृतप्राभृतं/मूलं (१७) चन्द्रप्रज्ञप्ति - प्राभृतं / प्राभृतप्राभृतं/मूलं आगम १८-१७भां प्राभृतप्राभृत न प्रतिपत्तिः नाम पेटा विलागि छे. पए। उद्देशकः जाहि મુજબ તેનો વિશેષ વિસ્તાર થાયેલ નથી. वक्षस्कारः / मूलं (१८) जम्बूदीपप्रज्ञप्ति - (१९) निरयावलिका - (२०) कल्पवतंसिका - (२१) पुष्पिता अध्ययनं/मूलं (२२) पुष्पचूलिका - अध्ययनं / मूलं अध्ययनं / मूलं अध्ययनं / मूलं (२३) वहिदशा - अध्ययनं / मूलं खागम १८ थी २३ निरयावलिकादि नामथी साथे भेवा भने छे प्रेम तेने उपांगना पांय वर्ग तरी सूत्रद्वारे खोजजावेला छे. मां वर्ग-१, निरयावलिका, वर्ग-२ कल्पवतंसिका... वगेरे भाषावा ( २४ थी ३३) चतुः शरण (आदि दशेपयन्ना) मूलं (३४) निशीथ उद्देशकः/मूलं उद्देशः मूलं (३५) बृहत्कल्प (३६) व्यवहार - उद्देशकः / मूलं (३७) दशाश्रुतस्कन्ध (३८) जीतकल्प - मूलं ( ३९ ) महानिशीथ - अध्ययनं / उद्देशकः / मूलं दशा/मूलं (४०) आवश्यक अध्ययनं/मूलं (४१) ओघ / पिण्डनियुक्ति - मूलं (४२) दशवैकालिक - अध्ययनं / उद्देशकः / मूलं (४३) उत्तराध्ययन अध्ययनं //मूलं (४४ - ४५ ) नन्दी - अनुयोगद्वार - मूलं · Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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