Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 1255
________________ ३५६ निशीथ - छेदसूत्रम् - ३- २० / १३७० तुब्भं एवं अस्थि, अहवा भणाति -मए चेव तुमं वायणं देता सुत्ता। आयरिओ भणाति - आमंति सच्चं इदानिं तं मे संकितं जातं, न य दानजोग्गं, न य संकियसुत्तत्थं दिजति, आगमे पडिसिद्धं, गच्छ अन्नतो जत्थ निस्संकं सुतं । तं संघाडए त्कति जो संघाडयस्स उव्वयाति सो भण्णति[भा. ६३५५ ] एक्कल्लेण न लब्भा, वीयारादी वि जयण सच्छंदे । भोयणसुत्ते मंडलि, अपढंते वी निओअंति ॥ - अम्हं एरिसा सामायारी नो संघाडएणं विना लब्मति सण्णभूमिमादि निग्गंतुं, एसा सच्छंदेण यणा । ‘“मंडलि’”त्ति जो सो अनुबद्धवेरत्तणेण आगतो सो इमाए जयणाए पडिसेहिज्जति । जोय सुत्तमंडलीए उब्वियाति, "भोयण" पच्छद्धं, अम्हं सामायारी अवस्सं मंडलीते समुद्दिसियव्वं, सुत्तत्थमंडलीसु जति न पढति न सुणेति वा तहावि मंडलीए उवविट्ठो अच्छति, न सच्छंदेण अच्छिउं लब्भति || [भा. ६३५६ ] अलसं भणंति बाहि, जित हिंडसि अम्ह एत्थ बालाती । पच्छितं हाडहडं, अवि उस्सग्गं तहा विगती ।। धू- " बाहिरायणयणे "त्ति जो आलस्सियत्तमेणं आगतो सो इमाए पडिसेहिज्जति, अलसितो भणति-अम्हं एत्थ सखेत्ते बाल- गिलाण - वुड्ढावि हिंडंति, जति दिने दिने भिक्खायरियं करेसि तो अत्थ पच्छित्तंति। जो निधम्मो “अइउग्गदंडो आयरिओत्ति" एतेहिं कारणहिं आगतो सो इमाए जयणाए पडिसेहिजति सो अन्हं सामायारी जइ दुप्पमज्जियादीणि करेति तो वि अम्हं हाडहडं पच्छित्तं दिज्जति, हाडहडं नाम तक्कालं चेव दिजति न कालहरणं कजति । अविउस्सग्गे "त्ति जो सो अविगती नानुजाणति त्ति आगओ, सो भण्णति-अम्हं सामायारी जोगवाहिणा विगतिकाउस्सग्गं अकरेंतेण पढियव्वं । “तह" त्ति - किं चान्यत् - अम्हं सामाचारी जोगव हिनाऽजोगवाहिना वा विगती न गृहीतव्या इत्यर्थः । अहवा - “तह" त्ति जं सो कारणं दीवेति तस्स तहेव प्रतिलोमं उवन्नसिज्जति । एत्थ चोदग आह [भा. ६३५७ ] तत्थ भवे मायमोसो, एवं तु भवे अनज्जवजुतस्स । वृत्तं च उज्जुभूते, सोही तेलोक्कदंसीहिं ।। चू-तत्रेति या एषा निग्गमे असुद्धे उवाएणं पडिसेहणा भणिता । अत्र कस्यचिन्मति स्यात्एवं पडिसेहंतस्स माया भवति मुसावायं च भासति, जेण विजमाण सुतं नत्थि त्ति भणति संकियं वा, एवं संघाड़गादिसु अनज्जवं अरिजुत्तं करेमाणो मायामुसावाएणय जुत्तो भवति अवज्जवयणजुत्तो वा, उवतं च “सोही उज्जुअभूतस्स य" कारग - सिलोकोऽयं, तंच अज्जवं अकरेम णस्स संजमसोही न भवति । आचार्याह - न मायामुसावाओ य; जतो कारणे मायामुसावातो य अनुन्नायो । इमंच कारणंनिग्गमण से असुद्धं तेन उवायपडिसेहो कओ ॥ किं च [ भा. ६३५८ ] एसा उ अगीयत्थे, जयणा गीते वि जुज्जती जं तु । विद्देसकरं इहरा, मच्छरिवादो य फुडरुक्खे ॥ चू- एवं अगीयत्था पडिसेधिज्जति गीयत्था पुण फुंडं चैव भण्णंति, ते सामायारीं जाणंता किह अप्पतियं दोसं वा कहेंति, तेसु वि य जं मातामुसावादकारणं जुज्जति तं च कायव्वं । अगीयत्थाणं पुण “इहर” त्ति फुडं भणंताणं विद्देसकरं भवति, चिंतंति य, एते मच्छरभावेण न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 1253 1254 1255 1256 1257 1258 1259 1260 1261 1262 1263 1264 1265 1266 1267 1268 1269 1270 1271 1272 1273 1274 1275 1276 1277 1278 1279 1280 1281 1282 1283 1284 1285 1286 1287 1288 1289 1290 1291 1292 1293 1294 1295 1296 1297 1298 1299 1300 1301 1302 1303 1304 1305 1306 1307 1308 1309 1310 1311 1312 1313 1314 1315 1316 1317 1318 1319 1320 1321 1322 1323 1324 1325 1326 1327 1328 1329 1330 1331 1332 1333 1334 1335 1336 1337 1338 1339 1340 1341 1342 1343 1344 1345 1346 1347 1348 1349 1350 1351 1352 1353 1354 1355 1356 1357 1358 1359 1360 1361 1362 1363 1364 1365 1366 1367 1368 1369 1370 1371 1372