Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 1314
________________ उद्देशकः २०, मूलं-१३८३, [भा. ६५७७] ४१५ पंचविहं आयारं जो मुणइ आयरइ वा सम्मं सो आयारवं । आलोइजमाणं जो सभेदं सव्वं अवधारेति सो आहारवं । पंचविहं आगमादि ववहारं जो मुणइ सम्मं सो ववहारवं । आलोययं गृहंतं जो मुहुरादिवयणपयोगेहिं तहा भणइ जहा सम्मं आलोएति सो उब्बीलगो ।आलोइए जो पच्छित्तंकारवेति सोपकुब्बी।जहा निव्वहइतहापायच्छित्तं कारवेति सोनिज्जवगो।अनालोएतस्स पलिउंचंतस्सवापच्छित्तंच अकरेंतस्स संसारे जम्मणमरणादीदुलभबोहीयत्तंपरलोगावाए दरिसेति, इहलोगे च ओमासिवादी, सो अवायदंसी। आलोइयं जो न परिस्सवति अन्नस्स न कहेति त्ति वुत्तं भवति सो अपरिस्सावी । एरिसो आलोयणारिहो।। इमेरिसो आलोयगो - "जाती कुल' गाहा । जातीए कुलेण य संपन्नो अकिचं न करेति।। १॥काऊण वा सम्मं कहेति ॥२॥ विनीयो निसेन्जादिविणयं सव्वं करेति, सम्मं च आलोएति ॥ ३ ॥ नाणी नाणानुसारेण आलोएइ ।। अमुगसुतेण वा मे पच्छित्तं दिन्नं सुद्धो अहमिति दसणेण सद्दहत्ति ॥५॥ एवं चारित्तं भवति, संपन्नो पुणो अतियारं न करेति, अनालोतिए वा चरित्तं नो सुज्झतित्ति सम्मआलोएइ ॥ ६॥खमादिजुत्तो खमी, गुरुमादीहिं वा चोतितो कम्हे ति फरुसं न भणति, सम्मंपडिवनति, जंपच्छित्तं आरोविञ्जति त सम्मं वहतीति ॥७॥ दंतो इंदियनोइंदिएहिं वादंतो।।८॥अपलिउंचमाणो आलोएति वहतिवाअमायी ॥९॥ आलोएत्ता नो पच्छा परितणइ, दुहु मे आलोइयं ति अपच्छायावी ॥ एरिसगुणजुत्तो आलोयगो । इमे आलोयगस्स आलोयणादोसा___ “आगंपइत्ता अनुमाणइत्ता, जं दिटुं बायरं च सुहुमं वा। छन्नं सद्दाउलगंबहुजन अव्वत्त तस्सेवी" ॥ वेयावच्चकरणेहिं आयरियं आराहेत्ता आलोयणं देंति ॥१॥ “चरमं थोवं एस पच्छित्तं दाहितिन वा दाहिति" पुवामेव आयरियं अनुणेति- “दुब्बलो हं थोवं मे पच्छित्तं देज्जह" ।।२।। जो अतियारो अन्नेणं कज्जमाणो दिट्ठो तं आलोएति, इयरं नो आलोएति ॥३॥"बायरं" . महंता अवराहा ते आलोएत्ति, सुहुमा नो ॥ ४॥ अहवा - सुहिमे आलोएति, नो बायरे । जो सुहुमे आलोएति सो कहं बायरे न आलोएति, जो वा बायरे स कहं सुहमे नालोए त्ति ।। ५।। "छन्नं 'ति-तहाअवराहेअप्पसद्देणउच्चरइजहाअप्पणाचेव सुणेति, नोगुरु॥६॥ “सद्दाकुलं"ति • महंतेण सद्देण वा आलोएति जहा अगीयातिणो वि सुगंति ॥७॥ बहुजनमझे वाआलोएति, अहवाएक्कस्स आलोएति पुणो अन्नेसिं आलोएति॥८॥"अव्वत्तो" अगीयत्यो तस्स आलोएति ॥९॥"तस्सेव"त्ति-जो आयरिओ तेहिं चेव अवराहपदेहिं वइति तस्सालोएति. "एस मे अतियारतुल्ले न दाहिति, न वा मे खरंटेहिति" ॥१०॥त्ति ॥ इदानि आलोयणविधी भण्णति[मा.६५७८] आलोयणाविहाणं, तंचेव दव्वखेत्तकाले य। भावे सुद्धमसुद्धे, ससणिद्धे साइरेगाई ।। धू-आलोयणाविहाणं जं पढमसुते वुत्तं तं चेव सव्वं सवित्थर इह दब्बखेत्तकालभावेहि पडिसेवितंभाणियव्वं, पसत्येहिं वा दव्वखेत्तकालभावेहिं आलोएयव्वं पडिसेवितं पुण भावतो सुद्धेण वा असुद्धेण अपच्छित्ती सप्पच्छित्ती वा । असुद्धेण सपायच्छित्तं, तं च पायच्छितं इह सुत्ते सातिरेगमासो केण भवति?, उच्यते- “ससणिद्धे सातरेगा" इति । अस्य व्याख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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