Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 1325
________________ ४२६ निशीथ-छेदसूत्रम् -३-२०११३८७ धू-कप्पट्टितो अनुपरिहारिओ वा असमत्थस्स असनाती आनेउं देति । भावे आयरिओ सुत्ते अत्थे वा पडिपुच्छं देइ । अहवा-जं गिलाणस्स कजति सो भावस्सुवग्गहो। अहवा दोसुवि उवग्गहेसुत्ति अस्य व्याख्या[भा.६६११] परिहार ऽनुपरिहारी, दुविहेण उवग्गहेण आयरिओ । उवगिण्हति सव्वं वा, सबालवुवाउलं गच्छं । चू- परिहारियं अनुपरिहारियं च एते दो वि दुविहेण वि दव्वभावोवग्गहेण उवगेण्हति । “सव्वत्थायरिओ"त्ति परिहारियस्सअपरिहारियस्स अनुपरिहारियस्स सबालवुड्स्स य गच्छस्स दव्वभावेहिं सव्वहाउवग्गहं करेति ॥ एवंपरिहारियस्स परिहारतवेण गिलायाणस्स पुव्वं अनुसंट्ठी कजति, ततो उवालंभो दिजति, पच्छा से उवग्गहं कजति । भणियंच "दान दवावण कारावणे य करणे य कयमणुन्ना य। उवहियमनुवहियविधिं जाणाहि उवग्गह एयं" ।। अनुसहि-उवालंभ-उवग्गहे तिसु विपदेसु अट्ठभंगा कायव्वा, जतो भण्णति[भा.६६१२] अहवाऽनुसङवालंभुवग्गहे कुणति तिन्नि वि गुरू से। सव्वस्स वा गणस्सा, अनुसवादीणि सो कुणति ।। धू-एस अट्ठमो भंगो, आदिल्लेसुवि सत्तसु जत्तियं चेद भणति करेति वा । अहवा - न केवलं परिहारियस्स करेति “सो''त्ति-आयरिओसव्वस्स गणस्स अट्ठभंगीए अनुसहिमादीणि करेति, अहवा - "सो" त्ति - परिहारिओ, गणस्स करोतीत्यर्थः ।। अत्र चोदकः[भा.६६१३] आयरिओ केरिसओ, इहलोए केरिसो व परलोए। इंहलोए असारणिओ, परलोए फुडं भणंतो उ॥ धू-छम्मासियं अनुग्गहकसिणं जो एस उवग्गहकरो आयरिओ तं चेव नाउमिच्छे केरिसो इहलोगे परलोए वा हितकरो? आचार्याह - आयरिओ चउव्विहो इमो - इहलोगहिते नामेगो परलोगे । एवं चउभंगो। पढमबितियभंगवक्खाणं पच्छद्धं । इहलोगं पडुच्च जो य सारेति, आहारवत्थपत्तादियं च जोग्गं देति । परलोगहितो जो पमादेंतस्स चोयणं करेइ, न वत्थपत्तादियं देति । उभयहितो जो चोदेति, वत्यादियं च देति । चउत्थो उभयरहिओ।। ___चोदगाह- "ननुजो भद्दसभावत्तणओन चोएति, सो इहलोए इच्छिजति।जो पुन करपरुसं भणंतो चंडरुद्राचार्यवत् चोदेति, न सो इच्छिज्जति"। आचार्याह[भा.६६१४] जीहाए विलिहतो, न भद्दतो जत्त सारणा नस्थि। दंडेण वि ताडतो, स भद्दतो सारणा जत्थ ।। - एत्थ कारणमिणं[भा.६६१५] जह सरणमुवगयाणं, जीवियववरोवणं नरो कुणति । . एवं सारणियाणं, आयरिओ असारओ गच्छे । धू-साधूकहं सरणमुवगया? उच्यते-जेन पक्खे पक्खे भणंति- “इच्छामिखमासमणो!, कताइंच मे कितिकम्माइं" इत्यादिजाव "तुब्भंतवतेय सिरीओ (ए) चाउरंताओ संसारकंताराओ साहत्थं (ह) नित्थरिस्सामि" त्तिक१, एवं सरणमुवगताअचोदेंतो परिचयइ॥तम्हाततियभंगिल्लो For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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