Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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निशीथ-छेदसूत्रम् -३-२०/१४२०
पंचमासियं वा आदी काऊण संजोगा कीरंति । एसा परट्ठाणवड्टी । एयासिं अत्था चोद्दणाए कारणाणियजहा पढमठवियाणंएवं पढमसुत्तस्स पट्ठवणाएपडिसेवणा य भणिया । इदानि बितियसुत्तस्स बहुसस्स इमा विधी - छम्मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अनगारे अतरा बहुसो वि मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजा, अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअटुं सहेउंसकारणं, अहीनमइरित्तं तेन परं दिवो मासो, एवं पंचमासिए पट्ठवितेमासिया पडिसेवमा चउम्मासिए पंचमासिया, तेमासिए पट्टविए, मासिए पट्टविए, दोमासितेपट्टविए, मासिया पडिसेवणा, पक्खिया आरोवणा, एवं ठवितगा सुत्ता वि दिवड्डमासादि भाणियव्वा ।तंचेव निरवसेसं बहुसाऽभिलावेणं सब्बं भाणेयव्वं । एवं दस सुत्ता सुत्तकमेण चेव भाणियब्वा । नवरं-पट्टवणे छ वा पंच वा चत्तारि वा तिन्नि वा दो वा एको वा पडिसेवणहाणेसु तं चेव सव्वत्थ । सेसं जहा कसिणसुत्ते तहा ठविते य पट्टविए य, सुत्ता वि तह चेव तेसिं संजोगा वि तह चेव कायव्वा ।
जो वि को वि विसेसो विबुद्धीए उवउजिऊण भाणियब्बो इमातो जंतगातो-फुना३२ १॥फुफुफु फु। ना ना ना ना ना ना ।एक एक एक एक एक एक । ३३३३३३।२२२ २२२।११११११। एवं पट्टवितिगा सुत्ता समत्ता । इदानि इह अज्झयणे सुत्तावत्तिपरिमाणदुवारेण पच्छित्तवहंतगा भण्णंति । जतो भण्णति[भा.६६४८] एक्लूणवीसतिविभासियम्मि हत्यादिवायणं तस्स ।
___ आरोवणरासिस्स तुं, वहंतया होतिमे पुरिसा॥ चू-जे भिक्खू हत्थकम्मंकरेइ-इत्यादिसुत्तातोजावएगूणवीसतिमुद्देसगअंतसुत्तेवायणसुत्तं, एतेसु एगूणवीसुद्देसेसु जो पच्छित्तरासी विभासिओ तस्स पच्छित्तस्स वहंतया इमे पुरिसा॥ [भा.६६४९] कयकरणा इतरे या, सावेक्खा खलु तहेव निरवेक्खा।
निरवेक्खा जिनमादी, सावेक्खा आयरियमादी । घू-कयकरणा जेहिंचउत्थछट्ठमादी तवो कतो। “इतरे"त्ति-अकयकरणा।जे कयकरणा ते दुविहा - सावेखा निरवेक्खाय।तत्थ निरवेक्खा जिन दिया,ते सरीरगच्छादिणिरवेक्खत्तणतो निरवेक्खा । आदिसद्दातो सुद्धपरिहारिया अहालंदिया पडिमापडिवन्ना एते नियमा कयकरणा इत्यर्थ । जे पुण सरीरगच्छे य सविक्खा ते तिविहा-"आयरियादी", आदिसद्दातो उवज्झाया भिक्खूय॥ [भा.६६५०] अकयकरणा वि दुविहा, अनभिगता अभिगता य बोधव्वा ।
जं सेवती अभिगतो, अनभिगते अस्थिरे इच्छा। धू-जे अकयकरणाते दुविधा-अनभिगता इयरेय। तत्थ अनभिगता नामअगहियसुत्तत्था। इयर त्ति- “अभिगता", ते य गहियसुत्तत्था । एत्थ जो कयकरणो धितिसंघयणजुत्तोअभिगतो य सो जं सेवति तं चेव से पच्छित्तं दिज्जति । जो पुण अनभिगतो अथिरो अकयकरणो धितिसंघयणादिहीनो तस्सजं आवन्नो तं वा दिज्जति हुसियं वा अन्नं हुसियतरं वा "इच्छ' त्ति - जाव से झोसो वा इत्यर्थः । एवं संखेवओ भणियं । इमं वित्थरतो[भा.६६५१] अहवा सावेक्खितरे, निरवेक्खो नियमसा उ कयकरणा ।
___ इतरे कताऽकता वा, थिराऽथिरा नवरि गीयत्था ।
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