Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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निशीथ - छेदसूत्रम् - ३- २० / १३८७
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चू- चउलहुगाङ्क ।। सु ।। ण्का ॥ सु । फुं ॥ ङ्क । गुरुगस्स एते पच्छित्ता "दोहि वि" गाहा वसभाणं वि नवहं आलोएंतगाणं एते चैव पच्छिता, नवरं तवगुरुगा काललहू, भिक्खूण वि नवहं आलोएंतगाणं एते चैव पच्छित्ता। नवरं तवलहुगा कालगुरू || क्वचित् पाठांतरं[ भा. ६६३३] लहुया लहुओ सुद्धो, गुरुगा लहुगो य अंतिमो सुद्धो । छल्लहु चउलहु लहुओ, वसभस्स तु नवसु ठाणेसु ।। दोहि वि गुरुगा एते, गुरुम्मि नियमा तवेण कालेणं । वसहम्मि वि तवगुरुगा, कालगुरू होंति भिक्खुम्मि | [भा. ६६३५ ] एमेव य भिक्खुस्स वि, आलोएंतस्स नवसु ठाणेसु ॥ गुरुगा पुण आदी, छग्गुरुगा तस्स अंतम्मि ॥
[ भा. ६६३४ ]
४३२
चू- एवं वसभस्स वि आलोयणारिहरस अविणयप्रतिपत्तौ इमं पच्छित्तं। आयरियस्स नवविहस्स आलोयगस्स आदिसद्दाओ वसहभिक्खूण वि नवविहाणं । आदिसीहानुगे चउलहुं, मज्झिमे चउगुरुं, अंतिल्ले छल्लहुं, वसभानुगेसु दोसु मासलहुं, अंतिल्ले चउलहुं दो कोल्लुगा सुद्धा, अतिल्ले मासलहुं । सेसं पूर्ववत् । भिक्खुस्स आलोयणारिहस्स सीहाणुगादिभेदस्स णव आयरिया सीहानुगादिभेदभिन्ना आलोयणा । एवं च वसभा नव आलोएंतगा, भिक्खुणोवि नव आलोएंतगाणं, तत्थ जे आयरिया नव आलोयगा । एतेसिं पच्छित्तं । जहासंखेण इमं
[भा. ६६३६ ] चउगुरू चउलहु सुद्धो, छल्लहु चउगुरुग अंतिमो सुद्धो । छग्गुरु चउगुरु लहुओ, भिखुस्स तु नवसु ठाणेसु ॥ खू - का, क, सु, फुं क्का, सु, प्र, [ भा. ६६३७]
- आयरियस एते पच्छित्ता तवेण कालेण वि गुरुगा, वसभाण विनवण्हं आलोएंतगाणं एथे चैव पच्छिता, नवरं तवगुरुगा काललहुगा, भिक्खूण विनवण्हं आलोएंतगाणं एते चेव पच्छित्ता, नवरं तवलहुगा कालगुरुणा । क्वचित् पाठान्तरं “एमेव य भिक्खू' गाहा - भिक्खूस्स तिविधभेदभिन्नस्स आलोयणारिहस्स आयरियवसभभिक्खुणो आलोएंतगा । नव भेदा पूर्ववत् । आइट्ठाणे सहानुगे चउगुरुं, मज्झट्ठाणसीहानुगे छल्लहुं, अंतट्ठाणसीहानुगे छग्गुरुं ।। सेसं पूर्ववत् ॥ पच्छित्तदानलक्खणं अविनयप्रतिपत्तौ इमं
[ भा. ६६३८]
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ङ्का, ०
दोहि वि गुरुगा एते, गुरुम्मि नियमा तवेण कालेणं । वसभम्मि वि तवगुरुगा, कालगुरू होंति भिक्खुम्मि ॥
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सव्वत्थ वि सट्ठाणं, अनुमुयंतस्स चउगुरू होंति ।
विसमासण नीयतरे, अकारणे अविहिए मासो ।।
चू- " सव्वत्थ" त्ति सर्वालोचनारिहस्याविनयप्रतिपत्तौ इमं आलोणारिहो जारिसे आसणे निविट्ठी आलोयगी वि जति तारिसं आसनं अमुचंतो आलोएति तत्तुल्य एव स्थितेत्यर्थः । तो चउगुरु पच्छित्तं । अह विसमे अधिकतीतो छल्लहुं छग्गरुं वा स्थानापेक्षयेत्यर्थः । अह विसमे नीयतरे ठितो मासलहुं अयं अकारणे निसीएइ तस्स पच्छित्तं । आलोयणकाले सेसप्रविहीसु वि अप्पमज्जणादीसु मासलहुं चेव ।। इमं अववादतो भण्णति
[भा. ६६३९]
सव्वत्थ वि सट्टाणं, अनुमुयंतस्स मासियं लहुयं । परठाणम्मिय सुद्धो, जति उच्चतरे भवे इतरो ।।
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