Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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उद्देशक : २०, मूलं-१३८१, [भा. ६५२५)
४०१ सोजतिछसुमासेसुपट्टवितेसुअंतराजति वि मासियादिपडिसेवतितंतस्स पुवठवियछम्मासस्स जे सेसा मासा दिना वा अच्छंति ताण मज्झे पक्खेवो अनुग्गहरुसिणेण निरनुग्गहकसिणेण वा कजति ।। एवं वक्खमाणं "निहीण दिलुतो"त्ति एयस्स इमं वा वक्खाणं[भा.६५२६] अहवा महानिहिम्मि, जो उवचारो स चेव थोवे वि।
विनयादुपचारो पुण, छम्मासे तहेव मासे वि।। चू- अहवेत्ययं विकल्पे, महानिहिं उक्खममाणे जारिसो उवयारो कीरइ तारिसो थेवे वि निहिम्मि, एवं अवराहालोयणाए जारिसो छम्मासावराहालोयणाए निसिज्जादि विणओवतारो कीरइ तारिसो मासिए वि आदग्गहणाओ दव्वादिसु तारिसोय पसत्थेसु चेव प्रयलो ।।
सीसो पुच्छति- "एवं तवच्छेदमूलारुहं पच्छित्तं कओ उप्पजइ ?" गुरू भणइ[भा.६५२७] मूलतिचारेहितो, पच्छित्तं होति उत्तरेहिं वा।
तम्हा खलु मूलगुणे, नऽइक्कमे उत्तरगुणे वा ।। घू-पानवहादीहिं वा उत्तरगुणेहिं विराहिएहिं एयपच्छित्तं भवइ तम्ह मूलगुणा न विराहेयव्वा उत्तरगुणा वा ॥ चोदगो भणइ - “वा' संबोवादाणतो इमा अत्थावत्ती उवलक्खिजति[भा.६५२८] मूलब्बयातिचारा, जयसुद्धा चरणभंसगा होति ।
उत्तरगुणातिचारा, जिनसासने किं पडिक्कुट्ठा ।। खू-जतिमूलगुणातियाराचेवचरणभंसका भवंतितोसाहूणंउत्तरगुणातियारा चरणअवराहगा होता साहूणं जिनसासणे किं पडिसिद्धा? तेसिं पडिसेधो निरत्यगो पावति ।। अह इमं होज[भा.६५२९] उत्तरगुणातिचारा, जयसुद्धा चरणभंसगा होति।
मूलव्वयातिचारा, जिनसासने किं पडिक्कुट्टा ।। अह तुब्भेभणह-उत्तरगुणाइयाराचरणभ्रंसका होतितो मूलगुणाइयारा साधूणंमा पडिसिझंतु अविराहणत्वाच्च, पडिसेविजंतु, न दोसो || आयरियो भणइ[भा.६५३०] मूलगुण उत्तरगुणा, जम्हा भंसंति चरणसेढीओ।
तम्हा जिनेहि दोनि वि, पडिसिद्धा सव्वसाहूणं ।। चू-मूलुत्तरगुणा जम्हा दो विपडिसेविजमाणा चरणसेढीओ भ्रशंति, तेन कारणेण दोण्ह वि अतिचरणं जिनेहिं पडिसिद्धं । जं पुण “वाकारो" अत्यावत्तिं घोसेह, तत्थ वाकारो इमं दरिसेइ - मूलगुणा वि पडिसेविजमाणा चरणाओ भंसंति, उत्तरगुणा वि पडिसेविजमाणा चरणाओ भंसंति, दो वि वा जुगवं सेवमाणा चरणाओ भंसंति । अहवा - वागारो इमं अत्थं दरिसेइ - मूलगुणेहिं पडिसेविजमाणेहि मूलगुणा ताव हता चेव उत्तरगुणा वि हम्मंति, उत्तरगुणेहिं पडिसेविजंतेहिं उत्तरगुणा ताव पडिसेविते चेव हता, मूलगुणा विहता लब्प्रति ।।
कहं ?, उच्यते इमेण दिटुंतसामत्थेण[भा.६५३१] अग्गघातो हणे मूलं, मूलघातो य अग्गगं।
छक्कायसंजमो जाव, तावऽनुसजणा दोण्हं ।। चू-जहा तालदुमस्स अग्गसूतीए हताए मूलो हतो चेव, मूले वि हते अग्गसूती हता, एवं
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