Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 1308
________________ ४०९ उद्देशक : २०, मूलं-१३८१, [मा. ६५५५] पन्नारस० गाहा । थोवे बहुए वा आवन्नस्स सत्तरस तेमासिया “निक्खेवो" त्ति पुव्वं दायव्वा, ततो दुमासिया सत्तरस, ततो मासिया सत्तरस, ततो भिन्नमासा लहू वीसं, निक्खिवियव्वा इत्यर्थः । अतो “परं"ति छेदादिअनुग्घातिए वि तिमासिया य पन्नरस भाणियब्वा अट्ठारस भिन्नमासा। अतोपरंछेदादी ।। एवं अन्नतरतरगतो-इदानिआयतरस्स वि पट्टवियं असंचतियं संचतियं वा, तंपि एक्केकं उग्घातमनुग्घातं वा, तं वहंतोजति थोवं बहुं वाइंदियादीहिं आवजति तो इमंदानं[भा.६५५६] आततरमादियाणं, मासा लहु गुरुग सत्त पंचेव । चउतिग चाउम्मासा, तत्तो यचउव्विहो भेदो॥ घू-आततरो जस्स वेयावच्चकरणलद्धी नत्थि, आदिसद्दातो परतरे य विही भणीहामि, तत्थ आततरे आवन्ने सत्तवारा मासिय लहुयं दिज्जति, जइ पुणो आवजति तो चत्तारिवारा चउलहुयं दिनति, जइ पुणो वि आवजइ तो छेदतियं, एवं मूलतियं, अणवठ्ठतितं, एकं पारंचियं । एवं अनुग्घातिए वि, नवरं-पंचवारा मासितं गुरुअं दिजति, तिन्नि वारा चउगुरुअंदिज्जति, “ततोय चउविहो भेदो"त्ति छेदमूलअणवट्ठ पारंचियं, एत्थ छेदमूलअणवठ्ठा तिगतिगा दट्टव्वा, गतो आयतरो॥ इदानं परतरो, सो य जस्स वेयावच्चकरणलद्धी अस्थि सो य सब्बहा पच्छित्तस्स अतरोन भवति, जम्हा निम्वितितादिता तरति काउंतम्हा एत्थ विएगखंधकावोडीदिलुतो भाणियब्बो, जं च आवन्नोस निक्खित्तं कज्जति, जाव वेयावच्च करेति, वेयावच्चं करंतो जं आवजंति तं से सव्वं झोसिज्जति, वेयावच्चे समत्ते तं से पुव्ब निक्खित्तं पट्टविनति । तं च वहंतस्स जइ इंदियादीहिं आवजति । तत्थ दाने इमातो दो गाहाओ परोप्परभाववक्खाणे भावट्टियाओ एगत्थाओ[भा.६५६७] सत्तय मासा उग्घाइयाण छच्चेव होतऽनुग्घाया। पंचेव य चतुलहुगा, चतुगुरुगा होति चत्तारि ॥ [भा.६५५८] आवन्नो इंदिएहि, परतरए झोसणा ततो परेणं । मासा सत्त य छच्च य, पग चउक्कं चउ चउक्कं ।। चू-तस्स परतरस्स संचइयासंचइयाए वा उग्घातानुग्धातीए वा पट्टविते पुणो थोवबहुए वा आवन्नस्स सत्त वारा मासिय लहुअं दिज्जति, पुबगमेणंपंचवारा चउलहुअंदिजति, ततो छेदतियं मूलतियं अणवठ्ठतियं एकंपारंचियं । अह अनुग्घातियं पट्टविय तो उग्घातियं अनुग्घातियं वा थेवं बहुअंवा आवन्नस्स छव्वारा मासियं गुरुअंदिजति, चत्तारि वारा चउगुरुं दिजति, ततो छेदतियं मूलतियं एक्कं पारंचियं ।। “झोसणा ततो परेणं"ति अस्य व्याख्या[मा.६५५९] तं चेव पुवभणियं, परतरए नत्थि एगखंधादी। दो जोए अचएते, वेयावच्चट्ठिया झोसो॥ चू- मासादि जाव छम्मासा तवं जो वोलिणो - तवेण नो सुज्झति त्ति बुत्तं भवइ, अणवठ्ठपारंचियतवाणि वा अतिच्छितो समाप्तेत्यर्थः । देसच्छेदं पि अतिच्छितो - तेन वि न सुज्झतित्ति तस्स विमूलं, तवेण पावं सुज्झति त्ति।तवं जोन सद्दहति, अहवा-असद्दहमाणे त्ति मिच्छादिट्ठी व्रतेषु ठवितो पच्छा सम्मत्तं पडिवनस्स सम्मं आउट्टस्स मूलं, जहा गोविंदवायगस्स। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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