Book Title: Agam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 1297
________________ ३९८ निशीथ - छेदसूत्रम् - ३२० / १३८१ चिंतेइ अन्ने वि मे बहू अवराहा अस्थि, ते वि मे नाउं एसमं पुणो पिट्टेहिति त्ति इमेणं से ते सव्वे कमि | भणाति गावी पीता वासी, त हारिता भायणं पि ते भिन्नं । अजेव ममं सुहतं, करेहि पडवो वि ते हरिओ ।। चू- गावी वच्छेण पीया, कंसभायणमण्णं वा भग्गं, एवमादिअवराहे स एकसरा कहिएसु तेन सा तं एक्कवारं पिट्टिता । एवं लोउत्तरे वि अनेगावराहपदावण्णेसुएगो पच्छित्तदंडो अविरुद्ध ।। अधवा एत्थेव आलोयणत्थे इमो दिट्टंतो [भा. ६५१५] [भा. ६५१४] नेगासु चोरियासू, मारणडंडो न सेसगा डंडा । एवं नेगपदेसु वि, एगो डंडो न उ विरुद्धो ॥ चू- एगो चोरो । तेन य बहुगागीता चोरिया कयाओ । कस्स ति भायणं हरियं, कस्स ति पडओ, कस्स ति हिरण्णं, कस्स ति सुवण्णं । अन्नया तेन राउले खत्तं खयं, रयणा गहिया, गहिओ य सो आरक्खेण रन्नो उवट्ठविओ । तस्समयं अन्ने उवट्ठिता भणंति- अम्ह वि एतेण हडं ति । रन्ना रयणहारि त्ति काउंसेसचोरियाओ य नाउं तस्स मारणदंडो एक्को आणत्ता, सेसचोरियदंडा तत्थेव पविट्ठा । एवं लोउत्तरे वि अनेगपदेसु एगडंडो अविकुट्ठो | बितियभंगे मायाविणो पुणो आलोएंतस्स अन्नं पि पच्छित्तं दिज्जति । एवं जत्तिया वारा माई आलोएति तत्तिया पच्छित्ता । ततियभंगे असढस्स जद्दिवसं आलोयणा समायाति तद्दिवसं एगपच्चित्तं दिजति । चरिमभंगे तेन निसेज्जा कया आलोइयं च भणति य सम्पत्ता मम आलोयणा, दिन्नं पच्छित्तं, उड़िता गुरू, पुणो संभरियं तक्खणं चेव निसज्जुं काउं पुणो य आलोइयं, ता गुरू असढस्स भणति तं चैव ते पच्छित्तं, असढभावा अन्नं न देइ | अहवा साधूणं देवसियालोयणकाले गुरूणं अनेग निसिज्जा साधूणं अनेगा आलोयणाओष एवं आलोयणं पडुच एगत्तमावन्ना ॥ - इदानिं दुब्बलं पडुच्च भणति । तत्थ भंडीचउक्कभंगदिट्ठतो । भंडी बलिया बइल्ला बलिया, एवं चउक्कभंगो । पढमभंगे बहु आरिभिज्जति, सेसेसु तिसु भंगेसु इमा विभासा - बितिय भंगे जं बइल्ला सक्कति कष्ड्डिउ तत्तियं आरुभिज्जति । ततियभंगे जेन भंडी न भज्जति । चरिमभंगे उभयं पि जत्तियं तरति तत्तियं आरुभिजति । एयस्सिमो उवणओ [भा. ६५१६] संघणं जह सगड, धिती उ धुजेहि होति उवनीतो । बिय तिय चरिमे भंगे, तं विज्जति जं तरति वोढुं ।। चू- सगडसरिच्छं सघयणं, धितियबलं बइल्लतुल्लं, एत्थ वि चउभंगो । पढमे सव्वं दिज्जति, बितिए धितिअनुरूवं, ततिए संघयणानूरूवं, चरिमे उभायनुरूवं, जं तरति तत्तियं दिज्जति ।। एवं दुब्बलं पच दोसाणं एगत्तं । इदानिं आयरियं पडुच्च भण्णति, “सामिपत्तेयतेणम्मि” त्ति[भा. ६५१७] निवमरण मूलदेवो, आसऽहिवासे य पट्टि न तु डंडो । कप्पियगुरुदंडो, मुंचतिजं वा तरति वोढुं ॥ चू- एत्थ नगरे राया अपुत्ती मओ, तत्थ य रायचिंतगेहिं देवयाराधननिमित्तं अस्सो य हत्थी य अहियासिओ । इओ य मूलदेवो चोरियं करेंतो गहिओ, तेहिं रजचिंतगेहिं वज्झो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 1295 1296 1297 1298 1299 1300 1301 1302 1303 1304 1305 1306 1307 1308 1309 1310 1311 1312 1313 1314 1315 1316 1317 1318 1319 1320 1321 1322 1323 1324 1325 1326 1327 1328 1329 1330 1331 1332 1333 1334 1335 1336 1337 1338 1339 1340 1341 1342 1343 1344 1345 1346 1347 1348 1349 1350 1351 1352 1353 1354 1355 1356 1357 1358 1359 1360 1361 1362 1363 1364 1365 1366 1367 1368 1369 1370 1371 1372