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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
गमनागमन करता है ? गौतम ! भवादेश से वह जघन्य दो भव करता है और उत्कृष्ट अनन्त भव करता है । कालादेश से जघन्य दो अन्तमुहूर्त तक, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक ।
भगवन! वह उत्पल का जीव. द्वीन्द्रियजीव पर्याय में जा कर पनः उत्पलजीव में आए तो उसका कितना काल व्यतीत होता है ? कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! वह जीव भवादेश से जघन्य दो भव करता है, उत्कृष्ट संख्यात भव करता है । कालादेश से जघन्य दो अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात काल व्यतीत हो जाता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव को भी जानना । भगवन् ! उत्पल का वह जीव, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकजीव में जाकर पुनः उत्पल के जीव में आए तो उसका कितना काल व्यतीत होता है ? वह कितने काल तक गमनागमन करता है ? गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव करता है और उत्कृष्ट आठ भव । कालादेश से जघन्य दो अन्तमुहूर्त तक और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व काल । इसी प्रकार मनुष्ययोनि के विषय में भी जानना । यावत् इतने काल उत्पल का वह जीव गमनागमन करता है । भगवन् ! वे उत्पल के जीव किस पदार्थ का आहार करते हैं ? गौतम ! वे जीव द्रव्यतः अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं, इत्यादि, प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाईसवें पद के आहार-उद्देशक में वनस्पतिकायिक जीवों के आहार के विषय में कहा है कि वे सर्वात्मना आहार करते हैं, यहाँ तक सब कहना । विशेष यह है कि वे नियमतः छह दिशा से आहार करते हैं । शेष पूर्ववत् । - भगवन् ! उन उत्पल के जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है । भगवन् ! उन जीवों में कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! तीन समुद्घात, यथा-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात | भगवन् ! वे जीव मारणान्तिकसमुद्धात द्वारा समवहत होकर मस्ते हैं या असमवहत होकर ? गौतम ! (वे) समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं । भगवन् ! वे उत्पल के जीव मर कर तुरन्त कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् या देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिक पद के उद्धर्तना-प्रकरण में वनस्पतिकायिकों के वर्णन के अनुसार कहना।
- भगवन् ! सभी प्राण, सभी भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व; क्या उत्पल के मूलरूप में, उत्पल के कन्दरूप में, उत्पल के नालरूप में, उत्पल के पत्ररूप में, उत्पल के केसररूप में, उत्पल की कर्णिका के रूप में तथा उत्पल के थिभुग के रूप में इससे पहले उत्पन्न हुए हैं ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्तबार (पूर्वोक्तरूप से उत्पन्न हुए हैं ।) 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! यह इसी प्रकार है !'
| शतक-११ उद्देशक-२ [४९९] भगवन् ! क्या एक पत्ते वाला शालूक एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला है ? गौतम ! वह एक जीव वाला है; यहाँ से लेकर यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं; तक उत्पलउद्देशक की सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष इतना ही है कि शालूक के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की है । शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए । 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! यह इसी प्रकार है ।'