Book Title: Agam Nimbandhmala Part 03
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ 52 द 67 72 आगम निबंधमाला 26/ जीमणवार-बडे भोजन में गोचरी(आचा.२) | गोचरी के कुल(आचा.२) | वायुकाय की विराधना : एक चितन(आचा.२) 21 प्रकार के धोवण पानी क्यों ?(आचा.२) कंदमूल त्याग विचारणा महत्त्व(आचा.२) कुंभी पक्व फल(आचा.२) आहारपानी परठने की विधि(आचा.२) मद्यमांस आहार के पाठों की विचारणा(आचा.२) सात पिंडेषणाओं का खुलाशा(आचा.२) साधु को चर्म, छत्र रखना क्यों कब ?(आचा.२) अन्य संप्रदाय के साधु के साथ एक पाट पर(आचा.२) वन-उपवन में ठहरना और ल्हसुन(आचा.२, अ.७) | मल-मूत्र विसर्जन विधि आगम से (आचा.२, अ.८) / भगवान का गर्भ संहरण ब्राह्मण कुल विचारणा(आचा.२)| विविध मतमतांतर सिद्धांत स्वरूप(सूय.) | साधुओं के 36 अनाचार सूयगडांग सूत्र से(सूय.) | दानशाला प्याऊ दाणांपीठ की चर्चा (सूय.) चार समवसरण-चार वाद-३६३ पाखंड स्वरूप(सूय.) 44 | उच्च गुणों पर पानी फेर देने वाले अवगुण(सूय.) | मुनि को उपदेश का विवेक(सूय.) बारह प्रकार के जीव और उनका आहार(सूय.२) प्रत्याख्यान का महत्त्व एवं श्रद्धा(सूय.२) भाषा संबंधी अनाचार एवं विवेक ज्ञान(सूय.२) | अपात्र और अयोग्य को ज्ञान क्यों देना(सूय.२) धर्म की प्राप्ति तथा धर्म के प्रकार(ठाणांग.) | 64 इन्द्र संबंधी ज्ञान(ठाणांग.) तारे टूटने का अर्थ(ठाणांग.) लोक में उद्योत अंधकार का तात्पर्य(ठाणांग.) | माता-पिता का आदि का ऋण(ठाणांग.) 101 - 103 104 106 107 108

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 256