Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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हवे तपना विषयमा पापश्रमण केवा होय ? ते कहे छ.दुद्धदही विंगईओ, औहारेइ अभिक्खणं । अरए अंतवोकम्मे, पार्वतमणे ति बुश्चई ॥ १५॥
अर्थ-तथा जे (दुदही) द्ध,दही अने उपलचणथी बीजी पण (विगईओ)विकार करनार होवाथी विकृतिभोने (प्रमिक्खणं) वारंवार कारण विना पण (आहारेइ) आहार करे-खाय (अ) अने तेथी करीने ज (तवोकम्मे) अनशनादिक पहियाने विहे (
अ निवारको न होन-लासक्त न होय, ते (पावसमणे ति बुचई ) पापश्रमण छ एम कहेवाय छे. १५. अत्यंतम्मि अ सूरसिम, आंहारेइ अंभिक्खणं । चोइओ पंडिचोएइ, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥ १६ ॥ ___ अर्थ-(अ) तथा जे साधु ( सूरम्मि ) सूर्य (अस्थतम्मि) अस्त पामे सते-अस्त समय लगभग (अभिक्खन) वारंवार 10 (आहारेइ ) आहार करे, तथा ( चोइओ) जो कोई गीतार्थ गुर्वादिक तेने प्रेरणा करे के-“हे आयुष्मान् ! केम प्राप्रमाणे केवळ आहारमांज तत्पर रहो छो? फरीथी भावी धर्मसामग्री मळवी दुर्लभ छ, माटे प्रावी सामग्री पामीने तो तपमा उद्यम करवो योग्य छे." मा प्रमाणे प्रेरणा कों सतो ( पडिचोएइ ) सामी प्रेरणा करे-सामु बोले के-" तमे उपदेश भापवामा ज डाहा छो, परंतु पोते तो करता नथी, नहीं तो आबु जाणता छतां तमे केम उत्कृष्ट तप करता नथी?" प्रा प्रमाणे सामो | जवाब आपे, ते ( पायसमणे ति वुचई ) पापश्रमण के एम कहेवाय छे. १६.
ओयरिभपरिचाई, परपासंडसेवए । गाँणंगणिए दुभए, पावसमणे ति वुच्चई ॥ १७ ॥