Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 33
________________ ३२० अणुमोगदाराई पुव्वी वि णेयव्वा । से तं संगहस्स अणोव णिहिया खेत्ताणुपुन्वी । से तं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुब्बी ॥ ओवणिहिप-खेतान पुग्यो-पर्व १७६. से किं तं ओवणिहिया खेताणुपुत्वी ? ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णता, तं जहा-पुव्वाणुपुत्वी पच्छाणुपुष्यो अणाणुपुवी' ॥ १७७. से कि तं पुव्वाणुपुवी ? पुष्वाणुपुत्वी-अहोलोए तिरियलोए उड्ढलोए। से तं पुवाणुपुची ।। १७८. से किं तं पच्छाणुपुष्वी ? ६च्छाण पुथ्वी-उड्ढलोए तिरियलोए अहोलोए। से तं पच्छाणुपुवी ॥ १७६. से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणु पुवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छ गयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुवी ॥ १८०. अहोलोयखेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा---पुव्वाणुपुव्वी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुवी ॥ १८१. से किं तं पुव्वाणुपुवी ? पुव्वाणुपुवी- रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा 'पंक से कि तं अणाणुपुवी? अणाणुपुब्बी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छ - गयाए अण्णमण्णाभासो दुरूवूणो। से तं अणाणुपुवी। सटाणे समोतरंति । से तं समोआरे । से कि त अणुगमे ? २.--अविहे पण्णते, तं जहा-सांतपयपरूवणया जाव अप्पाबहुं नत्थि । संगहस्स आणुपुव्यिदव्वाइं कि अत्थि? नस्थि ? निअमा अस्थि । एवं तिणि वि। सेसदारगाइं जहा दव्वाणुपूवीए संगहस्स तहा खेत्ताणुपुवीए वि भाणिअन्वाइं जाव से तं अणुगमे (ख, ग); नवरं क्षेत्रप्राधान्यादत्र 'तिपएसोगाढा आणुपुवी जाव अखेज्जपएसोगाढा : आणुपुवी एगपएसोगाढा अणाणुपुवी दुपएसोगाढा अवत्तव्वए' इत्यादि वक्तव्यम् (हे)। १. अतः परं केषुचिदादशेषु भिन्ना वाचना दृश्यते-से कि तं पुवाणुपुब्बी ? पुवाणुपुष्वी-एगपएसोगाढे जाव अखेज्जपएसोगाढे । से तं पुवाणुपुव्वी । से किं तं पच्छाणूपुची? पच्छाणुपुव्वीअसंखेज्जपएसोगाढे जाव एग पएसोगाढे। से तं पच्छाणुपुवी। अहवा ओवणिहिया खेत्ताणुपुब्धी तिविहा पण्णता, तं जहा--पुवाणुपुची पच्छाणुपुची अणाणुपुवी। से कि तं पुवाणुपुवी? २ अहोलोए इत्यादिपाठः स्वीकृतपाठवत् (१७७ से १६१ सूत्रपर्यन्तं) वाच्यः । अस्यां वाचनायां स्वीकृतपाठस्य १९२-१६५ एतानि सूत्राणि न पठनीयानि । मलधारिहेमचन्द्रसूरिणाप्यस्य पाठान्तरस्य सूचना कृतास्ति----अत्र च क्वचिद्वाचनान्तरे एकप्रदेशावगाढादीनामसङ्ख्यात प्रदेशावगाढा-- ताना प्रथम पूर्वानुपूर्व्यादिभाव उक्तो दृश्यते, सोपि क्षेत्रानुपूळधिकारादविरुद्ध एव, सुगमत्वाच्चोक्तानुसारेण भावनीय इति । २. अहोलोए (क, ग)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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