Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 39
________________ ३२६ अणुओगदाराई २१६. से कि तं पुव्वाणुपुवी ? पुवाणपुवी-समए आलिया आणापाण' थोवे लवे मुहुत्ते' अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयणे संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगें अडडे, अववंगे अववे, 'हुहुयंगे हुहुए", उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, 'अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे", अउयंगे अउए', नउयंगे नउए', पउयंगे पउए, चुलियंगे चूलिया', सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओस प्पिणी उस्स प्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा" अणागतद्धा सव्वद्धा । से तं पुवाणुपुव्वी ॥ २२०, से कि तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुवी-सव्वद्धा जाव" समए । से तं पच्छाणु पुन्वी ॥ २२१. से कि तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अगंतग च्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवणो । से तं अणाणु पुन्वी ॥ २२२. अहवा ओवणिहिया कालाणुपुन्वी तिविहा पण्णता, तं जहा-पुव्वाणुपुवी पच्छा णुपुत्वी अणाणुपुवी। २२३. से किं तं पुव्वाणुपुन्वी ? पुन्वाणुपुव्वी-एगसमयट्ठिईए 'दुसमयट्ठिईएं तिसमयट्ठिईए जाव दससमयट्टिईए संखेज्जसमयट्ठिईए'१२ असंखेज्जसमय दिईए। से तं पुव्वाण पुवी। २२४. से कि तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुवी असंखेज्जसमयट्ठिईए जाव एगसमयट्टिईए। से तं पच्छाणुपुवी ॥ २२५. से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुत्वी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असं खेज्जगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवणो। से तं अणाण पूवी। से तं ओवणिहिया कालाणुपुन्वी से तं कालाणुपुव्वी॥ उकित्तणाणपुम्बी-पवं २२६. से किं तं उक्कित्तणाणुपुठवी ? उक्कित्तणाणुपुठवी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा पुव्वाणुपुष्वी पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुब्यो । २२७. से कि तं पुव्वाणुपुश्वी ? पुव्वाणुपुत्वी-उसभे अजिए 'संभवे अभिणंदणे सुमती १. आणू० (चू० हा)। ५. हुहूए (क); हूहूंअंगे हूहूए (ग)। २. महत्ते दिवसे (क); एकस्मिन् आदर्श ६. अत्थनिऊरे (क); अत्थनिऊरंगे अत्थनिऊरे 'दिवसे' पाठो विद्यते । 'ग' प्रतौ पूर्व लिखितो (हे)। नास्ति, पश्चात केचिद् मध्ये लिखितः । ७. अजुए (क)। चूणों वृत्त्योश्च नासौ व्याख्यातोस्ति, क्रमानु- ८. नजुए (क)। सारेण नासौ युज्यते । ६. चूलिए (क)। ३. उडू (ख, ग), उद् (पु)। १०. ईयद्धा। ४. 'क' प्रतो अत्र पाठसंक्षेपोस्ति, यथा--एवं ११. अणु० सू० २१९ । अडडे अववे" १२. जाव (क)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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