Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अणुओगदाराई
२८७. से किं तं साइ पारिणामिए ? साइ-गारिणामिए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा
गाहा-
जुण्णसुरा जुण्णगुलो, जुण्णघयं जुण्णतंदुला चेव । अब्भा य अब्भरुक्खा, संझा गंधव्वनगरा य ॥ १॥
उक्कावायादिसादाहा' गज्जियं' विज्जू निग्घाया' जूवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओं चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा 'पडिचंदा पडसूरा" इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा 'वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा" निरया रयणप्पभा 'सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पा धूम पभातमा " तमतमा 'सोहम्मे' 'ईसाणे सणकुमारे माहिदे बंभलोए
तए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे' अच्चुए गेवेज्जे अणुत्तरे ईसिप्पउभारा " परमाणुपोग्गले दुपएसिए" जाव अनंत एसिए" । से तं साइ"पारिणामिए ॥
२८८. से किं तं अणाइ" - पारिणामिए ? अणाइ पारिणामिए - धम्मत्थिकाए 'अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए" अद्धासमए लोए अलोए 'भवसिद्धिया अभवसिद्धिया" । से तं अणाइ - पारिणामिए । से तं पारिणामिए । २८६. से किं तं सन्निवाइए" ? सन्निवाइए - एएसिं"चेव उदइय उवस मिय-खइय-खओवसमय - पारिणामियाणं भावाणं दुगसंजोएणं तिगसंजोएणं चउक्कसंजोएणं पंचगसंजोएणं 'जे' निप्पज्जइ" सव्वे से सन्निवाइए नामे । तत्थ णं दस् दुगसंजोगा, दस तिगसंजोगा, पंच चउक्कसंजोगा, एगे" पंचकसंजोगे ||
२०. तत्थ णं जेते दस दुगसंजोगा ते णं इमे -- १. अस्थि नामे उदइए उवसमनिप्फण्णे" २. अस्थि नामे उदइए खयनिष्फण्णे ३. अस्थि नामे उदइए खओवसमनिष्फण्णे
१. दाघा ( ग ) । २. गज्जिया ( क ) |
३. X ( ख ) 1
४. जूवा ( क ) 1
५. उग्धाया ( क ) ।
६. पडिचंदया पडिसूरिया ( ग ) ।
७. वासधरो गामो नगरो घरो पव्वतो पायालो
भवणो ( क ) 1
८. जाव ( क )
६. सं० पा० - सोहम्मे जाव अच्चुए । १०. सोहम्मो जाव ईसीपव्भारो ( क ) । ११. x ( क ) ।
१२. वृत्तिकृतात्र वाचनान्तराणां सूचना कृतास्ति - वाचनान्तराण्यपि सर्वाण्युक्तानुसारतो भावनी
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यानि ( है ) ।
१३. साइय ( क ); सादीन ( ग ) |
१४. अणाइय ( क ) :
१५. जाव ( क ) ।
१६. भवसिद्धया अभवसिद्धया ( क ) ।
१७. पारिणामिए नामे ( क ) |
१८. सन्निवाइए नामे ( क ) ।
१६. जण्णं एएसि ( क ) 1
२०. जेणं ( क ) ; x ( ख, ग ) 1
२१. निप्फज्जइ ( ख, ग ) ।
२२. ये षड्विंशतिर्भङ्गा भवन्ति ते सर्वेपि साशिपातिको भाव इत्युच्यते ( है ) |
२३. एक्के य ( क )
२४. निप्पन्ने ( क ) सर्वत्र !
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