Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 60
________________ अणुओगदाराई अदनाम (वयविभत्ति)-पदं ३०८. से कि तं अट्ठनामे ? अट्ठनामे-अट्ठविहा वयणविभत्ती पण्णत्ता, तं जहागाहा-- निद्देसे पढमा होइ, बितिया' उवएसणे । तइया करणम्मि कया, चउत्थी संपयावणे ॥१॥ पंचमी यो अवायाणे, छट्ठी सस्सामिवायणे । सत्तमी सन्निहाणत्य, अट्ठमाऽऽमंतणी भवे ॥२॥ तत्थ पढमा विभत्ती, निद्दे से सो इमो अहं व त्ति । बिइया पुण उवएसे—भण कुणसु इमं व तं व ति ॥३॥ तइया करणम्मि कया-भणियं व कयं व तेण व मए वा। हंदि नमो साहाए, हवइ चउत्थी पयाणम्मि ॥४॥ 'अवणय गेण्ह य एत्तो", इतो वा पंचमी अवायाणे । छट्ठी तस्स इमस्स व, गयस्स वा सामिसंबंधे ॥५॥ हवइ पुण सत्तमी तं, इमम्मि आधारकालभावे य । आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण ! त्ति ॥६॥ —से तं अटुनामे ॥ नवनाम (कन्वरस)-पदं ३०६. से किं तं नवनामे ? नवनामे-नव कव्वरसा पण्णत्ता, तं जहा--- गाहा वीरो सिंगारो अब्भुओ य रोद्दो य होइ बोधठवो । वेलणओ बीभच्छो", हासो कलुणो पसंतो य ॥१॥ ३१०. वीररसलक्खणं--- तत्थ परिच्चायम्मि य, तवचरणे" सत्तजणविणासे य । अणणुसय-धिति-परक्कमलिंगो" वीरो रसो होइ ॥१॥ १. बीया (क)। २. संपवादणे (म)। ३. ४ (के, ग)। ४. इह प्राकृतत्वाद् दीर्घत्वम् । ५. सन्निभाणत्थे (क)। ६. कुण व (ठाणं ८१२४) । ७. णीतं (ठाणं ८१२४) । ८. अवणे गिण्हसु तत्तो (ठाणं ८१२४)। ६. अपायाणे (क)। १०. बोद्धन्वो (ख, ग)। ११. बीभत्थो (ग)। १२. परिच्चागम्मि (क)। १३. दाणतवचरण (ख, ग)। १४. परक्कमचिण्हो (है)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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