Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अणुशोगदाराई
क्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयसम्म च्छिमचउप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसेसिए गब्भवक्कं तियच उप्पयथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तय
गब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य"। १२. 'अविसे सिए परिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए उरपरिसप्प
थलयरपंचिदितिरिक्खजोणिए य भयपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य। एते वि सम्मच्छिमा पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य, गब्भवतिया वि पज्ज
त्तगा अपज्जत्तगा य भाणियव्वा । १३. 'अविसे सिए खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए सम्मच्छिमखहयरपंचि
दियतिरिक्खजोणिए य गब्भवक्कंतियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसेसिए सम्मुच्छिमखहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयसम्मच्छिमखयरपंचिंदियतिरिक्खजोगिए य आज्जत्तयसम्मुच्छिमखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य । अविसेसिए गब्भवतियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयगब्भवक्कंतियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तय
गब्भवक्कंतियखहयरपंचिदियतिरिक्खजोणिए य" । १४. 'अविसे सिए मणुस्से, विसे सिए सम्मच्छिममण स्से य गब्भवतियमणस्से य ।
अविसे सिए सम्मच्छिममणुस्से, विसे सिए पज्जत्तयसम्मुच्छिममणुस्से य अपज्जतयसम्मच्छिममणुस्से य । अविसे सिए गब्भवक्कंतियमणुस्से, विसे सिए पज्ज
त्तयगब्भवक्कंतियमणस्से य अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्से य" । १५. 'अविसे सिए देवे, विसेसिए भवणवासी वाणमंतरे जोइसिए वेमाणिए य" ।
१६. 'अविसेसिए भवणवासी, विसेसिए असुरकुमारे नागकुमारे सुवण्णकुमारे विज्जु१. अविसेसिओ यलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणीओ, कभेदस्य उल्लेखो नास्ति । विसेसिओ चउप्पओ परिसप्पो य । समुच्छि- ५. अविमेसिओ मणुस्सो, विसेसिओ समुच्छिममगब्भवतियपज्जत्तगअपज्जत्तगओ भेओ मणुस्सो य गन्भवतियमणुस्सो य । अविसेभाणियव्वो (क)।
सिओ संमूच्छिमो, विसेसिओ पज्जत्तओ २. सप्पो वि उरपरिसप्पभुयपरिसप्पसमुच्छिम- अपज्जत्तओ य । अविसेसिओ गम्भवक्कंतियगम्भवक्कतियपज्जत्तापज्जत्तभामओ भाणि- मणुस्सो, विसेसिओ कम्मभूमिगो अकम्मभूमिओ यव्वो (क)।
य अंतरदीवगो य । संखेज्जवासाऊ य ३. अविसेसिओ खयरपंचिदियरिक्खजोणिओ य, असंखिज्नवासाऊ य । पज्जत्तापज्जत भेओ विसेसिओ समुच्छिम गम्भवक्कंतियखयर
पज्जत्तापज्जत्तभेओ भागियनो (क)। ६. अविसेसिओ देवो, विसेसिओ भवणवासि४. प्रज्ञापनायां (११८४) 'सब्वाहि पज्जत्तीहिं वाणमंतरजोइसियवेमाणिओ (क) । अपज्जत्तगा' इति उल्लिखितमस्ति, तत्र पर्याप्त
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