Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ मोणुओगदाराई २९७ ३१. से किं तं ठवणासुयं ? ठवणासुयं-जण्णं कट्टकम्मे वा' चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा सुए त्ति° ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणासुयं ॥ ३२. नाम-टुवणाणं को पइविसेसो ? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आव कहिया वा ।। ३३. से कि तं दध्वमुयं ? दरसुयं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-आगमओ य नोआगमओ य ।। ३४. से कि तं आगमओ दव्वसुयं ? आगमओ दव्वसुयं-जस्स णं सुए त्ति पदं सिक्खियं ठिय जिय मियं परिजिय' 'नामसमं घोससम अहोणक्खर अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खर अक्खलियं अमिलिय अवच्चामेलियं पडिपुण्ण पडिपुण्णघोसं कंठोढविप्पमुक्क गुरुवायणोवगय, से णं तत्थ वायगाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, 'नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अगुवओगो दवमिति कटु ।। ३५. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं दव्वसुयं', 'दोणि अणुव उत्ता आगमओ दोण्णि दव्वसुयाई, तिष्णि अणवउत्ता आगमओ तिपिण दव्वसूयाई, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाई ताई नेगमस्स आगमओ दव्वसुयाई । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुव उत्ता वा आगमओ दव्वसुयं वा दव्वसुयाणि वा, से एगे दव्वसुए। उज्जुसुयस्स एगो अणुव उत्तो आगमओ एग दव्वसुयं, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जइ जाणए अणुव उत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्वसुयं ॥ ३६. से कि तं नोआगमओ दवसुथं ? नोआगमओ दवसुयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा - जाणगसरीरदव्वसुयं भवियसरीरदव्वसुयं जाणगसरीर - भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं ॥ ३७. से किं तं जाणगसरीरदव्वसुयं ? जाणगसरीरदव्वसुयं-सुए'त्ति पयस्थाहिगार जाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जोवविप्पजद सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसोहियागयं वा सिद्धसिलातल गयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जाअहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं सुए ति पयं आपवियं पण्ण -- -- -- - --- --- - - -- -- -- -..- .-....- - - - - - १.सं० पा०–कट्टकम्मे वा जाव ठवणा । ५. सं० पा० -दश्वसुयं जाव कम्हा । २.३४,३५ सूत्रद्वयं लक्षीकृत्य वृत्तौ एका टिप्पणी ६. सुय (क, ख, ग)। कृतास्ति-एतच्च काञ्चिदेव वाचनामाश्रित्य ७. सरीरं (क)। व्याख्यायते, वाचनान्तराणि तु हीनाधिकान्यपि ८. चविय (क)। दृश्यते (हे)। ६. सं० पा०-तं चेव पूवभणियं भाणियब्वं ३. सं० पा०-परिजियं जाव नो अणुप्पेहाए 1 जाव से तं। ४. नेगमस्स गं (ग)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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