Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Dasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ दसायो 'से दुक्खेति से सोयति एवं जूरेति तिप्पेति पिट्रेति परितप्पति । से' दुक्खण-सोयण जूरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंध-परिकिलेसाओ 'अप्पडिविरते भवति । ४. एवामेव से इत्थिकामभोगेहिं 'मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने" जाव वासाई चउपंचमाई छद्दसमाणि वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं भुंजित्ता भोगभोगाई, पसवित्ता वेरायतणाई, संचिणित्ता 'बहूई कराई" कम्माई ओसन्नं भारकडेण कम्मुणासे जहानामए अयगोलेति वा सेलगोलेति वा उदयंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमतिवतित्ता अहे धरणितलपतिढाणे भवति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसज्जाते वज्जबहुले धतबहुले२ पंकबहुले वेरबहुले ‘दंभ-निय डि-साइबहुले अयसबहुले अप्पत्तियबहुले उस्सण्णं तसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमतिवतित्ता५ अहे णरगतलपतिट्ठाणे भवति ।। ५. ते णं नरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खरप्पसंठाणसंठिया निच्चंधकार तमसा ववगय-गह-चंद-सूर-नक्खत्त-जोइसपहा मेद -वसा-मस-रुहिर-पूयपडलचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा" परमदुब्धिगंधा काउ'-अगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा। असुभा नरयस्स वेदणाओ। नो चेव णं नरएस नरइया निद्दायात वा 'पयलायोत वा सूति वा रात वा धिति वा मति वा उवलभंति । ते णं तत्थ उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं चंडं 'रुक्खं दुग्गं तिव्वं दुरहियासं नरएसु नेरइया निरयवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरति ।। ६. से जहानामए रुक्खे सिया पव्वतग्गे जाते मूलच्छिन्ने अग्गे गुरुए जतो निन् 'जतो दग्गं जतो विसमं ततो पवडति, एवामेव तहप्पगारे परिसज्जाते गब्भातो गम जम्मातो जम्मं मारातो मारं 'दुक्खातो दुक्खं दाहिणगामिए नेरइए किण्हपक्खिते ५ १. ते दुक्खें ति ते सोयंति जूरंति तिप्पंति परि- १४. अप्पत्तियदंभानिडिआसादणबहुले अयसवबहुले तप्पेंति (ता)। (ता)। २. अप्पडिविरया यावि भवंति (ता)। १५. पुढवितल० (ता)। ३. ते (ता)। १६. जोइसियपहा (क)। ४. मुच्छिया गिद्धा गढिता अज्झोववणा (ता)। ५,६.४ (ता)। १८. विस्सा (ता); वीभच्छा (वृपा)। ७. भुंजित्तु (ता)। १६ काउण (अ); काउय (क, चू); काऊ (ख); ८. पावाई (अ, क, ख); बहूणि पावाई (ता)। कण्ह (सू० २२।६०)। ६. उस्सण्णाई (सू० २।२१५६) । २०. ४ (ता)। १०. सिलोगोलेति (ता); सिला० (चू, वृ)। २१. तिव्वं दुक्खं दुगंध दुरधियासं (ता)। ११. उदगतलंसि (ता)। २२. वेदणं (ता)। १२. धुण्णबहुले (अ, ख); धूय० (सू० २।२१५६)। २३. जतो विसमं जतो दुग्ग (ता)। १३. सायबहुले (अ, क, ख); आसायणाबहले २४. गरगातो गरगं (ता)। (दृपा) । २५. कण्हे पक्खिए (ता)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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