Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Dasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
दसायो
पवीणेत्ता वाहणाइं सालंकाराई, करेति, करेत्ता वाहणाई वरभंड-मंडिताई करेति,' करेत्ता 'जाणाई जोएति, जोएत्ता वट्टमग्ग' गाहेति, गाहेत्ता पओय-लट्टि ५ओयधरए य समं आडहइ आडहित्ता" जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल' 'परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वदासी–जुत्ते ते सामी!
धम्मिए जाणप्पवरे आइछे भदं तव, द्रूहाहि ॥ ११. तए णं से सेणिए राया भिभिसारे जाणसालियस्स अंतिए एयमढ़ सोच्चा निसम्म
हट्टतु?'"-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं सते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहि मणिज्जेहि विहणिज्जेहि सव्वि दियगायपल्हाय णिज्जेहिं अभिगेहिं अभिगिए समाणे तेल्लचम्मंसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छएहिं दक्खेहि पत्तठेहिं कुसलेहि मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं अभिगण-परिमद्दणुव्वलण-करणगुण-णिम्माएहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए-चउविहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगय-खेय-परिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ" •अणुपविसित्ता समत्तजालाउलाभिरामे विचित्त-मणि-रयणकुट्टिमतले रमणिज्जे पहाणमंडवं सि णाणामणि-रयण-भत्तिचित्तंसि पहाणपीढं सि सुहणिसणे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो-पुणो कल्लाणग-पवर-मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवर-मज्जणावसाणे पम्हलसुकुमाल-गंध-कासाइ-लहियंगे सरस-सुरहि-गोसीस-चंदणाणुलित्तगत्ते अहयसुमहग्ध-दूसरयण-सुसंवुए सुइमाला-वण्णग-विलेवणे य आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारदहार-तिसरय-पालब-पलबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोभे पिणद्धगेवेज्जग-अंगलिज्जग-ललियंगय-ललियकयाभरणे वरकडग-तुडिय-थंभियभुए अहियरूव-सस्सिरीए
मुद्दियपिंगलंगुलीए कुंडल-उज्जोवियाणणे मउड-दित्तसि रए हारोत्थय-सुकय१. समलंकरेइ (ओ० सू० ५९) 1
पओय-धरए य सम्मं आडहइ, आडहित्ता वट्ट. २. जाणगं (अ, क, ख); वाहणाई जाणाई मग्गं गाहेइ गाहेत्ता (ओ० सू० ५६)।
(ओ० सू० ५६); असो पाठः वृत्त्याचारेण ६. सं० पा०-करयल जाव एवं ।। स्वीकृतः ।
७. आइट्ठा (अ, क, ख); आयटुं (ता)। ३. वटुमं (अ, ख); बट्टगं (क)।
८. ग्रूहाहि (अ); ग्गहाहि (क); गूग्गाहि ४. आरहति (अ); आहरति (क); आरुति (ख); दुरहादि (ता); आदिष्टं यद्युष्माभि
(ख); एष पाठो वृत्त्याधारेण स्वीकृतोस्ति । तत्र तवारोहणादौ भद्रं कल्याणं भवत्विति शेष: 'ओबाइय' सूत्रे ५६ सूत्रस्य वृत्तावपि 'आडहरू त्ति आदधाति नियुङ क्ते' ।
६. सं० पा०-हवतुटु जाव मज्जणघरं। ५. वाहणाई जाणांहंजोएइ, जोएत्ता पओय लट्रि १०. सं० पा०-अणुपविसइ जाब कप्परुक्खए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140