Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Dasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
पज्जोसवणाकप्पो
५३१ गवरपायवस्स अहे' सीयं ठावेइ, ठावेत्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयति, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूस
मायाय तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ॥ ११४. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए तेसीइं राइंदियाई निच्चं वोसटकाए चियत्तदेहे जे केइ
उवसग्गा उपज्जंति, तं जहा—दिव्वा वा माणस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा अण
लोमा वा पडिलोमा वा, ते उत्पन्ने सम्म सहइ 'खमइ तितिक्खई" अहियासेइ ॥ ११५. तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए" अणगारे जाए-इरियासमिए जाव' अप्पाणं
भावमाणस्स तेसीई राइंदियाई विइक्कताई चउरासीइमस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणस्स' जेसे गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे-चित्तबहुले, तस्स णं चित्तबहुलस्स चउत्थी-पक्खेणं पुठवण्हकालसमयंसि धायइपायवस्स अहे छठेणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहि नक्खत्तेणं जोगमवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समप्पन्ने जाव'
सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ।। ११६. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहा
संभेय अज्जघोसे" य, वसिटठे बंभयारि य ।
सोमे सिरिहरे चेव, वीरभद्दे जसे" वि" य ॥ ११७. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अज्जदिण्णपामोक्खाओ सोलस समणसाह
स्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था ॥ ११८. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स पुप्फचू लापामोक्खाओ अद्वतीसं अज्जियासाह
स्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था ॥ ११६. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स सुनंदपामोक्खाणं समणोवासगाणं एमा सय
साहस्सी चउस४ि च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था ॥ १२०. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स सुनंदापामोक्खाणं समणोवा सिगाणं तिन्नि
सयसाहस्सीओ सत्तावीसं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था । १. हेट्ठा (ता)।
८. सं० पा०--अणुत्तरे जाव केवल । २. मल्लालंकाराइ (ता) ।
६. प० सू० ८२ ३. तितिक्खइ खमइ (ग, पु)।
१०. सुभे (ग, घ, ठा० ८।३७) । ४. से पासे भगवं (क, ख, ग, पु); से भगवं ११. संजघोसे (ता); सुभघोसे (स० ८1८)। (ता)।
१२. वारीभद्द (ता)। ५. १० सू० ७८-८१1
१३. जसोभद्दे (ठा०८।३७)। ६. वट्टमाणे (ग, पु)।
१४. इ (ता)। ७. चेत्त (ता) अग्रेपि ।
१५. सुव्वय (क, म, घ)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140