Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Dasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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५५२
पज्जोसवणाकप्पो
२४६, वासावासं पज्जोसवियस्स भत्तपडियाइ क्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे' पडिगात्तए, सेवि य णं असित्थे नो 'विय” णं ससित्थे, से वि य णं परिपूते नो चेवणं अपरिपूते, सेवि य णं परिमिए नो चेव णं अपरिमिए' ॥
२५०. वासावासं पज्जोसवियस्स संखादतियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगात्तए पंच पाणगस्स अहवा' चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स अहवा पंच भोयणस्स चत्तारि पाणगस्स । तत्थ णं एगा दत्ती लोणासायणमेत्तमवि' पडिग्गाहिया सिया कप्पर से तद्दिवसं तेणेव भत्तट्ठेणं पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥
२५१. वासावासं पज्जोसवियाणं नो से कप्पति निम्गंथाण वा निग्गंथीण वा जाव उवस्सयाओ सत्तघरंतरं संखडि सन्नियट्टचारिस्स एत्तए ।
एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परेण संखड सन्नियट्टचारिस्स एत्तए ।
एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पड़ जाव उवस्सयाओ परंपरेण संखडि सन्नियट्टचारिस्स एत्तए ।
२५२. वासावासं पज्जोसवियस्स नो कप्पइ पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स' कणगफुसियमित्तमवि वुट्ठिकार्यसि निवयमाणंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्त वा पविसित्तए वा ॥
२५३. वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ अहिंसि पिंडवायं पडिग्गाहित्ता पज्जोसवित्तए । पज्जोसवेमाणस्स सहसा वुट्टिकाए निवइज्जा", देसं भोच्चा देसमायाय से पाणिणा पाणि परिपिहित्ता' उरंसि वाणं निलिज्जिज्जा, कक्खसि वा णं समाहडिज्जा, अहाछन्नाणि वा लयणाणि' 'उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से पाणिसि दते वा दतरए वा दगफुसिया वा नो परियावज्जइ ॥
१. उसिणोदए (ग, ता, पु); उसिणे वियडे (घ) 1
२. चेव (क, ता ) । ३. अपरिमिए
"बहुसं पुणे ..."अबहुसं पुण्णे
( क, ख, घ); अपरिमिए से वि य णं बहुसंपुणे नो चेव णं अबहुसंपुणे (ग, पु) । ४. 'ता' प्रतौ विकल्पद्वयस्य स्थाने विकल्पत्रयं दृश्यते--अथवा पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिमाहेत्तए चत्तारि पाणगस्स । अधवा चत्तारि भोयणस्स पडिगाहेत्तए चत्तारि पाणगस्स । अहवा चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स ।
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५. भोयणस्सादनमित्तामवि (ता) | ६. भिक्खुस्स जं किंचि (च्) । ७. निवडज्जा (पु) । ८. पडिपिवेत्ता (ता) | C. लेणाणि वा ( क ) 1
१०. उवलिएज्जा निरावरिस वा रुक्खमूलं उवासेज्जा (ता) 1
११. अतः परं 'क, ख, ग, घ, पु ́ प्रतिषु एक मतिरिक्तं सूत्रं दृश्यते--- वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिगहिस्स भिक्खुस्स जं किचि कणगफुसियमित्तं पि निवडs नो से कप्पइ
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