Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Dasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पंज्जोसवणाकप्पो
५०३
२१. तणं सा तिला खत्तियाणी तप्पढमयाए तओय' - चउदंतमूसिय-गलिय विपुलजलहर - हारनिकर- खीरसागर-ससंक किरण दगरय-रययमहा सेल पंडुरतरं समागयमहुयर- सुगंधदाण-वासिय- कबोलमूलं देवरायकुंजरं वरप्पमाणं पेच्छइ सजलघणविपुलजलहरगज्जिय-गंभीरचारुघोसं इमं सुभं सव्वलक्खणकथंबियं वरोरुं ॥
२२. तो पुणो धवलकमल-पत्तपयराइरेग- रूवप्पभं पहा-समुदओवहारेहिं सव्वओ चेव दीवयंतं अइसिरिभर पिल्लणा विसप्पंत-कंत-सोहंत- चारुककुहं तण सुई' - सुकुमाललोम-निद्धच्छवि थिर- सुबद्ध-मंसलोवचिय- लट्ठ - सुविभत्त-सुंदरंगं पेच्छइ घणवट्ट-लट्ठउक्किट्ठे तुपग्गतिक्खसिंगं दंतं सिवं समाण - सोभंत सुद्धदंतं वसभं अमियगुणमंगलमुहं || २३. तओ
पुणो हारनिकर- खीरसागर-ससंक किरण दगरय-रययमहासेल पंडुर गोर" रमणिज्ज -पेच्छणिज्जं थिर लट्ठ-पउठ्ठे वट्ट- पीवर सुसिलिट्ठ - विसिद्ध-तिक्खदाढा-विडंबियमुहं परिकम्मियजच्चकमल कोमल - पमाणसोभंत'- लट्ठ-ओट्ठ रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमालतालु - निल्ला लियग्गजीहं मूसागयपवरकणगता विय आवत्तायंतवट्टविमलतडि' - सरिसनयणं विसालपीवरवरोरु पडिपुण्णविमलसंधं मिउ'-विसय-सुहुमलक्खणपसत्थ-वित्थिण्ण" -केसराडोवसोहियं ऊसिय सुनिम्मिय - सुजाय-अप्फोडियनंगलं सोम्मं सोम्माकारं लीलायंतं नहयलाओ ओवयमाणं नियगवयणमइवयंतं पेच्छइ सा" गाढतिक्खनहं सीहं वयणसिरी पल्लवपत्तचारुजीहं ॥
२४. तओ पुणो पुण्णचंदवयणा उच्चागय-ठाण- लट्ठ-संठियं पसत्थरूवं सुपइट्ठिय- कणगकुंभ" - सरिसोवमाण चलणं अच्चुण्णय- पीण रइय-मंसल उन्नय-तणु - तंब निद्धनहं कमलपलास-सुकुमालकरचरण- कोमल व रंगुलिं कुरुविदावत्तवट्टाणुपुव्वजंघ निगूढजाणुं गवरकरसरिसीवरोरु चामीकररइयमेहलाजुत्त-कंत विच्छिन्नसोणिचक्कं जच्चजण- भमर-जलयपकर उज्जयसम-संहिय-तणु य-आदेज्ज-लडह-सुकुमाल-मउय-रमपfिsबुद्धा | एक्कं चणं महं महिंदकुंभ १. 'ता' संकेतितादर्शे २१-३५ एतानि सूत्राणि वरकमलपइट्ठाणं सुरभिवरवारिपुन्नं पडमुप्पलनैव दृश्यन्ते । पिहाणं आविद्धकंठेगुणं जाव पडिबुद्धा ॥ इक्कं चणं महं पउमसरं बहुउप्पलकुमुयनलिणसयवत्तसहस्सवत्तकेसरफुल्लोवचियं सुमिणे पासिता णं पडिबुद्धा १०॥ एक्कं च णं सागरं वीईतरंग उम्मीपउरं सुभिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा ११ । एक्कं चणं महं विमाणं दिव्वतुडियसद्द संपणद्दियं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा १२|| एक्कं च णं महं रयणुच्चयं सव्व रयणामयं सुमिणे पासिता में पडिबुद्धा १३|| एक्कं चणं महं जलणसिहं निद्धमं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा १४ ॥
२. तओ ( क ) : 'ततौजाः' इत्यर्थः । ३. तणुसुद्ध ( क, ख, ध ) | ४. उक्किट्ठविसिद्ध (पु) 1 ५. पुंडरंग ( क ) 1
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६. पमाण० ( क ) ; माइयसोभंत (पु) । ७. रत्तोप्पलपत्त (पु) ।
८. तडिविमल ( क, ख, ग, घ ) 1 E. 'विशद' इत्यर्थः ।
१०. विच्छिन्न (क, ग, घ, पु) 1 ११. एतत् कर्तृपदं क्वचिदेव दृश्यते । १२. कणकमय कुंभ (क) 1
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