Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Dasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 28
________________ दसामो छिधलिधारए' वा । तस्स गं आभट्ठस्स समाभट्टस्स' कप्पंति दुवे भासाओ भासित्तए, तं जहा-जाणं वा जाणं, अजाणं वा नोजाणं । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं दसमासे विहरेज्जा। दसमा उवासगपडिमा ।। १८. अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा--सव्वधम्म' 'रुई यावि भवति । तस्स णं बहूई सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्टविताई भवंति । से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अणुपालित्ता भवति । से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिव पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्म अणुपालित्ता भवति । से णं एगराइयं उवासगपडिम सम्म अणुपालेत्ता भवति । से णं असिणाणए वियटभोई म उलिकडे रातोवरातं बंभचारी । सचित्ताहारे से परिष्णाते भवति, आरंभे से परिणाते भवति, पेस्सारंभे से परिण्णाते भवति', उद्दिट्ठभत्ते से परिण्णाते भवति । से णं खुरमुडए वा लुत्तसिरए वा गहितायारभंडगनेवत्थे 'जे इमे" समणाणं निग्गंथाणं धम्मो तं सम्म कारण फासेमाणे पालेमाणे पुरतो जुगमायाए पेहमाणे दळूण तसे पाणे उद्धट्ट पायं रीएज्जा, 'साहट पायं रीएज्जा', 'वितिरिच्छे वा पायं कट्ट रीएज्जा, सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा, केवलं 'से णातए पेज्जबंधणे अव्वोच्छिन्ने भवति । एवं से कप्पति नायवीथिं एत्तए । 'तत्थ से' पुवागमणेणं पुवाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्से भिलंगसूवे', कप्पति से चाउलोदणे पडिगाहित्तए नो से वपति भिलंगसूवे पडिगाहित्तए । 'जेसे तत्थ'१६ पुवागमणेणं पुवाउत्ते भिलंगसूवेच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पति से भिलंगसूवे पडिगा हित्तए नो से कप्पति चाउलोदणे पडिगाहित्तए। 'तत्थ से'' 'पुव्वागमणेणं दोवि पुवाउत्ताई कप्पंति से दोवि पडिगाहित्तए । तत्थ से पच्छागमणेणं दोवि पच्छाउत्ताई णो से कप्पंति दोवि पडिगाहित्तए । जेसे तत्थ पुवागमणेणं पुवाउत्ते से कप्पति पडिग्गाहित्तए, जेसे तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते सेसे नो कप्पति पडिग्गा हित्तए। तस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स कप्पति एवं वदित्तए-सम१. छिधत्सिधारए (अ, ख); धिहाधारए (क); ६. वायं (ता)। छिहली (चू)। १०. x (अ, क)। २. समाभट्ठस्स वा (ख); समाभट्ठस्स वा ११. X (ता)। समाणस्स (ता)। १२. से णायए (ता); सण्णायगे (चू); णायए ३. सं० पा०—मवधम्म जाव उद्दिभत्ते । ४. लोइयसिरओ (ता)। १३. वित्तए (अ, क, ख)। ५. जारिसे (ख, ता, वृ)। १४. एत्थ णं तस्स (ता)। ६. ४ (ता)। १५. भिलिंगसूवे (अ, क)। ७. जुगमादाय (ता)। १६. तत्थ णं तस्स (ता)। ६. उद्धठ्ठ (क, ख, ता)। १७. तत्थ णं तस्स (ता) अग्रेपि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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