Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Dasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 36
________________ ४५६ दसाओ एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालिया यावि भवति ॥ ३२. एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्तअणगारस्स निच्च वोसटुकाए' 'चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा - दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासैति ॥ ३३. कप्पइ से अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा दोवि पाए साट्टु बग्घारियपाणिस्स एगपोग्गलनिरुद्धदिट्टिस्स' अणिमिसनयण' ईसि पब्भारगतेणं कारणं अहापणिहितेहि गत्ते हि सव्विदिएहिं गुत्तेहिं ठाणं ठाइए । तत्थ दिव्व- माणुस्स- तिरिच्छजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पर्यात्तिए वा पवत्तिए वा । तत्थ से उच्चारपासवणं उब्वाहेज्जा" नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिव्हित्तए वा, कप्पति से पुवपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिद्ववित्तए", अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए ॥ ३४. एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं अणणुपालेमाणस्स इमे तओ" ठाणा अहियाए असुभाए अखमाए अणिस्साए अणाणुगामियत्ताए भवंति तं जहा - उम्मायं वा लभेज्जा, दीहालियं वा रोयायंक पाउणेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ॥ T ३५. एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं सम्म अणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा हियाए" "सुमाए खमाए जिस्सेसाए अणुगामियत्ताए भवंति तं जहाओहिनाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, मणपज्जवनाणे वा समुप्पज्जेज्जा, केवलनाणे वा से असमुप्पन्नपुब्वे" समुप्पज्जेज्जा । १. सं० पा०-वोसट्टकाए जाव अहियासेति । २. अधितासेति ( ता ) 1 ३. अतः गुत्तेहि पर्यन्तं 'अ, क, ख' संकेतितादर्शेषु भिना पाठपद्धतिर्दृश्यते— ईसि पभा रगतेणं are गोग्गलट्टियाए दिट्ठीए अणिमिसनयाने अहापणितेहि गत्तेहि सव्विंदिएहि गोते ईसि दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स । भगवत्यां ( ३ / १०५ ) स्वीकृतपाठानुसारी कमो लभ्यते । ४. वग्धारित पाणस्स (ता) 1 ५. एगपोग्गलदिट्ठिस्स (ता); एगपोग्गलट्ठियदिट्टिस्स (वृ ) एगपोग्गलनिविदिट्ठी ( भ० ३ / १०५) । ६. मणमिस० (ता) । Jain Education International ७. अधा० (ता) । ८. गुत्ते (ता); सर्वेन्द्रियैर्गुप्तः (दृ) | अ प्रथमान्तं पदं न युक्तं स्यात् । भगवत्यां ( ३।१०५) 'गुत्तेहि' इति पाठो दृश्यते । स च युक्तोस्ति अतः तदाधारेण स एव मूले गृहीतः । ६. अत: 'अ, क, ख' आदर्शेषु संक्षिप्त पाठो दृश्यते - तिरिच्छजोणिया जाव अहाविहिमेव । १०. उव्वा हिज्जेज्जा (ता) | ११. परिद्ववेत्ता (ता) । १२ तयो (ता) | १३. सं० पा० - हियाए जाव अणुगामियत्ताए । १४. x ( ता ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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