Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Vavaharo Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
बीयो उद्देसो
६११ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियब्वे सिया ॥ १५. सपायच्छित्तं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज हित्तए ।
अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विषमुक्को, तो
पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया। १६. भत्तपाणपडियाइक्खितं भिक्खु गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स
निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ
विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ १७. अट्टजाय भिक्ख गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए । अगि
लाए तस्स करणिज्ज वेयावडियं 'जाव तओ' रोगायंकाओ बिप्पमुक्को, तओ'
पच्छा तस्स अहालहुसए नाम' ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ अनवटुप्प-पारंचियाणं उवट्ठावणा-पदं १८. अणवट्ठप्पं भिक्खं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छइयस्स उवट्ठावेत्तए । १६. अणवठ्ठप्पं भिक्खू गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए ।। २०. पारंचियं भिक्खं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए॥ २१. पारंचियं भिक्खु गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए । २२. अणवट्ठप्पं भिक्खु अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठा
वेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया ।। २३. पारंचियं भिक्खं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठा
वेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया ।। सच्चपइण्ण-ववहार-पदं २४. दो साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता
आलोएज्जा-अहं' णं भंते! अमुगेणं साहुणा सद्धि इमम्मि कारणम्मि पडिसेवी !' 'से य पुच्छियव्वे" "किं अज्जो! पडिसेवी उदाहु अपडिसेवी" ? से य वएज्जापडिसेवी, परिहारपत्ते । से य वएज्जा-नो पडिसेवी, नो परिहारपत्ते । जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेतब्वे । से किमाहु भंते! सच्चपइण्णा ववहारा॥
१. से य ताओ (ता)। २. अह (ता)। ३. ४ (ता) । ४. अणवठे (ता) सर्वत्र । 'ता' संकेतितादर्श 'अणवळं भिक्खू पारंचियं भिक्खु' एतेन क्रमेण
षण्णां सूत्राणां स्थाने त्रीण्येव सूत्राणि विद्यन्ते । ५. अह (क, ख, ता)।
६. इमंसी (क, ग)। ७. पडिसेवियब्वे (ता); अतोने वृत्तौ एष पाठो व्याख्यातोस्ति-पच्चयहेउं च सयं पडिसेवियं
भगति (व्य० मवृ, भाग ४, पत्र ५६) । ८. से त पुच्छितब्बे (क) ६. कं पडिसेवी (क, ग); किं पडिसेवी (ख,
जी, शु)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68