Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Vavaharo Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ ६१० ववहारो परिहारकप्पट्ठियादोणं अनिज्जूहण-पदं ६. परिहारकप्पट्ठियं भिक्खु गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहि ता। अगिलाए तस्स कर णिज्ज वेयावडियं 'जाव तओ' रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहाल हुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया ।। ७. अणवटुप्पं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पाइ तस्स गणावच्छेइयस्स निजहित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्ज वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ ८. पारंचियं भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पाइ तस्स गणावच्छेइयस्स निहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया ॥ ६. खित्तचित्तं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्ज हित्तए । · अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को; तओ चन्द्रा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया ।। १०. दिचित्तं भिवरखं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जहित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्ज वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमक्को तओ इच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया।। ११. जक्खाइट्ठं भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज हित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पचन्द्रा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियब्वे सिया ॥ १२. उम्मायपत्तं भिक्खु गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जू हित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्ज वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियब्वे सिया ॥ १३. उवसांगपत्तं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडिय जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया ।। १४. साहिगरणं भिक्खू गिलायमाणं नो कप्पड़ तस्स गणावच्छेइयस्स निजहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ १. गणाओ णिज्जूहित्तए (ता); नि! हितुमपाक ४. अहालहुस्सा (ख)। वैयावृत्त्याकरणादिना (व्य० मव, भाग ४, ५. ४ (ता) । पत्र २१)। ६. आदर्शषु ७-१६ सूत्रपर्यन्तं पाठसंक्षेपो विद्यते, २. से य ताओ (ता) यावत् पदानन्तरं 'से य' । यथा--रावं अण वटुप्पं पारंचियं खित्तचित्तं दिसइति कर्तृपदं गम्यम् । चित्तं जक्खाइटें उम्मातपत्तं उवसांगपत्तं साधि३. अह (ता)। करणं सपायच्छित्तं भत्तपाणपडियाइक्खित्तं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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