Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Vavaharo Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ववहारो २०. गणावच्छेइए' गणावच्छेइयत्तं निक्खि वित्ता ओहाएज्जा तिणि संवच्छराणि तस्स
तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिवियरस्स निविगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव
गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २१. आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं अनिक्खि वित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए
तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा
धारेत्तए वा ॥ २२. आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा, ति णि संवच्छ
राणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निविगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं
वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।। २३. भिक्खू य बहुस्सुए बब्भागमे 'बहुसो बहुआगाढागाढेसु' कारणेसु" माई मुसावाई
असुई 'पावजीवी जावज्जीवाए" तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव
गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए' वा धारेत्तए वा ।। २४. गणावच्छेइए 'बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु" कारणेसु माई 'मुसा
वाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा
जावंगणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।। २५. आयरिय-उवज्झाए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई
'मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा
जाव" गणावच्छेइयत्तं वा उद्दि सित्तए वा धारेत्तए वा ।। २६. बहवे भिक्खुणो बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई
मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा
जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २७. बहवे गणावच्छेइया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागादेसु कारणेसु माई १. 'ता' प्रती एतत् सूत्रं अत: परवतिसूत्रं च नैव ६. बहुसो आगाढेसु (ता) सर्वत्र । दृश्यते ।
७. जाव (क, ख, ग ता)। २. बहुसु आगा (ख)।
८. जाव (क, ख, ग, ता)। ३. x (ता)।
६. 'क, ख, ग' संकेतितादर्शषु सूत्रद्वयं संक्षिप्तं ४. पावकम्मोवजीविया वि भवति जावज्जीवं विद्यते---एवं बहवे गणावच्छेइया बहवे आय(ता) सर्वत्र ।
रियउवझाया। ५. उहिसावेत्तए (ता) सर्वत्र ।
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