Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Vavaharo Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ चउत्थो उद्देसो ६२१ बहणं आयरिय-उवज्झायाणं. अप्पतइयाणं बहणं गणावच्छेइयाणं अप्पच उत्थाणं 'कप्पइ वासावासं वत्थए अण्णमण्णनिस्साए"॥ मायरियावीणं देहावसाणे अग्णस्स उवसंपज्जणाविधि-पदं ११. 'गामाणुगामं दूइज्जमाणो भिक्खू य" जं पुरओ' कट्ट विहरई 'से य" आहच्च वीसभेज्जा', अस्थियाइं 'स्थ अण्णे" केइ उवसंपज्जणारिहे, से उवसंपज्जियव्वे। नत्थियाइं त्थ अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे, 'अप्पणो य से" कप्पाए असमत्ते ‘एवं से कप्पई एगराइयाए पडिमाए 'जण्णं-जणं" दिसं अण्णे साहम्मिया विहरंति 'तण्ण-तण्णं दिसं उवलित्तए"। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं" वत्थए, कप्पड़ से तत्थ कारणवत्तियं" वत्थए । तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जावसाहि अज्जो' ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कपइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छए वा परिहारे वा।। १२. 'वासावासं पज्जोस विओ भिक्खू जं पुरओ कटु विहरइ'", से य आहच्च वीसं भेज्जा, अत्थियाई त्थ 'अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे, से उवसंपज्जियव्वे । नत्थियाई त्थ अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे, अप्पणो य से कप्पाए असमत्ते एवं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अण्णे साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए । नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्टियंसि परो वएज्जा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा । एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छए वा“ परिहारे वा ॥ १. कप्पइ से अनमननीसाए वासावासं वत्थए १०. कप्पइ से (ख, ग, जी, शु)। (क, ता)। ११. जन्नु जन्नु (ग, ता)। २. भिक्खू य गामाणुगामं दुइज्जमाणे (क, ग, १२. तन्नु तन्तु (ग, ता)। ता)। १३. एत्तए (क, ता)। ३. पुरा (क, ग.)। १४. विहरणवत्तियाए (क, ता)। ४. विहरेज्ज (क, ख. ता)। १५. कारणवत्तियाए (क, ता)। ५. से (ख); ४ (ग, जी, शु) । १६. णं तुम अज्जो (ता)। ६. वीसुंभेज्जा (क, ता)। १७. भिक्खू य जं पुरा कटु वासावासं पज्जो७. तत्थ (क, ता)। सवेति (क, ता)। ८. यध्वे सिया (क, ता)। १८. सेसं तं चेव जाव छए वा (क, ख, ग, ता)। है. तस्स अप्पणो (ख, ग, जी, शु)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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