Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Vavaharo Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ववहारो १६. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अप्पणो 'असज्झाइए सज्झायं" करेत्तए ।
कप्पइ ‘ण्हं अण्णमणस्स" वायणं दलइत्तए ।। उवझायादि-उद्देसण-विहि-पवं २०. 'तिवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स" तीसवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए
कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए । २१. 'पंचवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स" सट्ठिवासपरियायाए' समणीए निग्गंथीए
कप्पइ आयरियत्ताए" उद्दिसित्तए॥ निग्गयस्स मरणोत्तर-विधि-पदं २२. 'गामाणुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वीसंभेज्जा" तं च सरीरगं 'केइ साह
म्मिया" पासेज्जा, कप्पइ से 'तं सरीरगं मा सागारियमिति 'कट्ट थंडिले" बहुफासुए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिद्ववेत्तए। अत्थियाई त्थ केइ 'साहम्मियसंतिए उवगरणजाए" परिहरणारिहे, कप्पइ से" सागारकडं गहाय दोच्चं पि
ओग्गहं अणुण्णवेत्ता परिहारं परिहरेत्तए"॥ सेज्जातर-व्यणाविधि-पवं २३. सागारिए" उवस्सयं वक्कएणं पउजेज्जा, से य वक्कइयं" वएज्जा-'इमम्मि य
१. असज्झाइयंसि सज्झाइयं (ता)।
(व्य० उद्देशक ७, भाष्यगाथा ४०६, पत्र ७०)। २. से (क, ता)।
८. भिक्खू य गामाणुगामं दूइज्जमाणे आहच्च ३. तिवासपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ (क,ता); वीसुंभेज्जा (क, ता, चू) । तिवासपरियाए समणे निग्गंथे (ख, ग, जी, ६. साहम्मिया (क, ता); कति साहम्मिए (ग); शु) इति प्रथमान्तः पाठः आदर्शषु विद्यते । केइ साहम्मिए (जी, शु)! कल्पते इति क्रियापदयोगात् असो षष्ठ्यन्तो १०. 'तं सरीरगं मा' इति पाठोत्र नास्ति (क, ता): युक्तः स्यात् । तेन मूले तथा स्वीकृतः ।
'मा' इति पदं नास्ति (ग); 'मा' इति पदस्य ४. तीसं वास (ग)।
स्थाने 'से न' इति पाठोस्ति (जी, शु)। ५. पंचवासपारयाए समणे निग्गंथे (क, ख, ग, ११. थंडिल्ले (ग, जी, शु)।
जी, ता, शु); अत्रापि षष्ठ्यन्तः पाठो युक्तः तेन १२. कटु तं सरीरयं एकतमंते परिटुवेत्ता (क, तथा स्वीकृतः । ६. परियातियाए (चू)।
१३. अचित्ते (क, ता)। ७. आयरियउवज्झा यत्ताए (ग, जी, शु, मवृ); १४. से तं (क, ता)। किन्त भाष्ये केवलं आचार्यपदमेव अधिकृत- १५. हारित्तए (ख); हारेत्तए (ग, जी, शु)। मस्ति
१६. साकारिए (ता); सारिए (जी, शु) सर्वत्र । तेवरिसो तीसियाए जम्मण चत्ताए कप्पति उवज्झे। १७. x (क, ता)। बितियाए सट्ठि सयरी य जम्मण पणवास आयरितो॥
ता)।
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