Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Nishihajjhayanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ दसमो उद्देसो दिसा-पदं ११. जे भिक्खू दिसं अवहरति, अवहरतं वा सातिज्जति ॥ १२. जे भिक्खू दिसं विपरिणामेति विप्परिणामेतं वा सातिज्जति ॥ आवेस-पवं १३. जे भिक्खु बहियावासिय आदेसं परं ति-रायाओ अविफालेत्ता संवसावेति', संवसातं वा सातिज्जति ॥ साहिगरण-पर्व १४. जे भिक्खू साहिगरणं अविओसविय पाहुडं अकडपायच्छित्तं परं ति-रायाओ 'विप्फालिय अविप्फा लिय" संभुजति, संभुजतं वा सातिज्जति ॥ उग्घाइय-अणुग्घाइय-पदं १५. जे भिक्खू उग्घातियं अणुग्धातियं वदति, वदंतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे भिक्खू अणुग्धातियं उग्घातियं वदति, वदतं वा सातिज्जति ॥ १७. जे भिक्खू उग्घातियं अणुग्धातियं देति, देतं वा सातिज्जति ॥ १८. जे भिक्खू अणुग्धातियं उग्घातियं देति, देतं वा सातिज्जति ॥ १६. जे' भिक्खू उग्घातियं सोच्चा णच्चा संभुंजति, संभुजतं वा सातिज्जति ॥ २०. जे भिक्खू उग्घातिय हेउं सोच्चा गच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा सातिज्जति ॥ २१. जे भिक्खू उघातिय संकप्पं सोच्चा णच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा सातिज्जति ॥ २२. जे भिक्खू अणुग्धाइयं सोच्चा णच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा सातिज्जति ॥ १. संवसति ( अ ) ; २. x ( ग ) ; चूर्णावपि 'विप्फालिय अविष्फालियं एते पदे व्याख्याते नव स्त: 1 ३. १६-२४ एषां षण्णां सूत्राणां स्थाने आदर्शषु द्वादश सूत्राणि लभ्यन्ते । एकविंशतिसूत्रानन्तरं एतत्सूत्रं विद्यते - जे भिक्खु उम्घातियं वा उग्घातियहेउं वा उग्धातिय संकष्पं वा सोन्चा णच्चा संभुजति, संभुजंतं वा सातिज्जति । चतुविशति सूत्रानन्तरं एतानि पञ्च सूत्राणि विद्यन्ते - जे भिक्खु अणुग्धाइयं वा अणुग्धाइहे वा अणुग्धाइय संकल्पं वा सोच्चा जच्चा संभुजति संभुजतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू उग्घाइयं वा अणुग्धाइयं वा सोच्चा णच्चा ७२६ Jain Education International संभुजति संभुजतं वा सातिज्जति । जे भिक्खु उधाय वा अणुग्धाइयहेतुं वा सोच्चा जच्चा संभुजति संभुजतं वा सातिज्जति । जे भिक्खु उग्घाइयसंकष्पं वा अणुग्धाइयसंकष्पं वा सोच्चा णच्वा संभुंजति संभुजंतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू उग्घाइयं वा अणुग्घाइयं वा उग्धाय वा अणुग्धाइहेडं वा उग्धाइयसंकल्पं वा अणुग्धा इयसंकप्पं वा सोच्चा णच्चा संभुंजति संभुजतं वा सातिज्जति । अस्माभिर्भाष्य- चूर्णिसम्मतः पाठः स्वीकृतः चूणौं 'एते छ सुत्ता' इति स्पष्टमुल्ले खोस्ति । द्रष्टव्यं भाष्यं ( गाथा २०६६, २८६९ ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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