Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 5
________________ મળવાનું ઠેકાણું : श्री मला.. स्थानवासी જૈનશાસ્ત્રાદ્ધાર સમિતિ, हे. छीपायोज, अभहावाह-१, 卐 પ્રથમ આવૃત્તિ પ્રત ૧૨૦૦ વીર સત ૨૫૦૪ વિક્રમ સવંત ૨૦૩૪ ઈસવીસન્ ૧૯૭૮ श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४ Published by: Shri Akhil Bharat S. s. Jain Shastroddhara Samiti, Ghhipapole, AHMEDABAD-1. ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञां, जानन्ति ते किमपि तान् प्रति नैष यत्नः । उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समानधर्मा, कालोह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी ॥ १ ॥ 卐 हरिगीतच्छन्दः करते अवज्ञा जो हमारी यत्न ना उनके लिये जो जानते हैं तच कुछ फिर यत्न ना उनके लिये ॥ जनमेगा मुझसा व्यक्ति कोई तत्त्व इससे पायगा । है काल निरवधि विपुलपृथ्वी ध्यान में यह लायगा ॥ १ ॥ 卐 भूस्य ३. 30-00 : भुद्र : મણિલાલ છગનલાલ શાહ નવપ્રભાત પ્રિન્ટીંગ प्रेस, धीडांटा शेड; सभहावाह.Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 841