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समर्पण
जिन्होंने अर्द्धशताब्दी से भी अधिक काल तक
आदर्श संयम की आराधना कर
अपना जीवन सार्थक बनाया, जो श्रुत की आराधना में निरन्तर निरत रहे और अपनी अगाध तत्त्व जिज्ञासा की पूर्ति के लिए सौराष्ट्र से राजस्थान तक पधारे, . जो सौराष्ट्र के जैन-जनमानस में अद्यापि
बसे हुए हैं, . जिन्होंने जिनशासन की अपने उत्तम आचार
एवं धर्मदेशना द्वारा बहुमूल्य सेवा की,
उन
परमतपस्वी स्व. माणकचन्द्रजी स्वामी
के कर-कमलों में, सादर सविनय समर्पित
[प्रथम संस्करण से]