Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
मज्ञापनासूत्रे स्पतिकायिकानां बहुत्वञ्च-'जत्थ आउकाओ तत्थ नियमा वणस्सइकाइया' यत्राप्कायस्तत्र नियमाद् वनस्पतिकायिका इति 'पणगसेवालहढाई वायरावि होति सुहुमा आणागेज्झा न चक्खुणा' इति, पनकशैवालहठादयो बादरा अपि भवन्ति, सूक्ष्मा आज्ञा ग्राह्या न चक्षुषा, समुद्रादिषु च प्रचुरं जलं भवति, समुद्राणाम् द्वीपापेक्षया द्विगुणविष्कम्भत्वात्, तेष्वपि समुद्रेषु प्रत्येकं पूर्वपश्चिमयो दिशोर्यथाक्रमं चन्द्रसूर्यद्वीपाः सन्ति, यावत्सु प्रदेशेषु चन्द्रसूर्यद्वीपाः समवगाढास्तावत्सु जलाभावो जलाभावाच्च वनस्पतिकायिकाभावो भवति, तत्रापि केवलं प्रतीच्यां दिशि लवणसमुद्राधिपसुस्थितनामदेवावासभूतो गौतमद्वीपो वाले होते हैं । अतएव जहां जल में वनस्पतिकायिक जीव दिखाई नहीं देते, वहां भी उनका अस्तित्व समझ लेना चाहिए।
वनस्पतिकायिक जीवों का बहुत्व 'जत्थ आउकाओ तत्थ नियमा वणस्सइकाइया' अर्थात् जहां अपकाय है वहां नियम से वनस्पतिकायिक जीव होते हैं, तथा 'पणगसेवालहढाई वायरा वि होंति सुहुमा आणागेज्झा न वक्खुणा' अर्थात् पनक, सेवार, हृढ आदि बादर भी होते हैं, सूक्ष्म केवल जिनाज्ञा ग्राह्य हैं, वे चक्षु द्वारा ग्राह्य नहीं हैं, इन उक्तियों से सिद्ध होता है ।। - समुद्र आदि में प्रचुर जल होता है और समुद्र, द्वीपों की अपेक्षा दुगुने विस्तार वाले हैं । उन समुद्रों में भी प्रत्येक में पूर्व और पश्चिम दिशा में क्रम से चन्द्र और सूर्य द्वीप स्थित हैं और जितने स्थान में चन्द्र-सूर्य द्वीप है उतने में जल का अभाव है और जल का अभाव होने से वनस्पतिकायिकों का भी अभाव है। इसमें मी पश्चिम दिशा में लवण समुद्र के अधिपति सुस्थित नामक देव का निवास रूप
वनस्पति यि योनु महत्व 'जत्थ आउकाओ तत्य नियमा वणस्सइकाइया, अर्थात् न्यो २५४ाय छे त्यां नपणे पन३५ति यि ७१ उप छ. तथा 'पणग सेवाल हढाईवायरा वि होति सुहुमा आणागेज्झा न चक्खुणा' અર્થાત્ પનક, સેવાળ, હઢ આદિ બાદર પણ હોય છે. સૂક્ષ્મ કેવળ જિનાજ્ઞા ગ્રાહ્ય છે. એ ચક્ષુદ્વારા ગ્રાહ્ય નથી, આ યુક્તિઓથી સિદ્ધ થાય છે.
સમુદ્ર આદિમાં પ્રચુર જળ હોય છે અને સમુદ્ર દ્વીપની અપેક્ષાએ બમણા વિસ્તાર વાળાં છે. તે સમુદ્રોમાં પણ પ્રત્યેકમાં પૂર્વ અને પશ્ચિમ દિશામાં કમથી ચન્દ્ર અને સૂર્ય દ્વીપ સ્થિત છે અને જેટલા સ્થાનમાં ચન્દ્ર સૂર્ય દ્વીપ છે તેટલામાં જળને અભાવ છે અને જળનો અભાવ હોવાથી વનસ્પતિ કાયિકને પણ અભાવ છે. તેમાં પણ પશ્ચિમ દિશામાં લવણું સમુદ્રના
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨