Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 13
________________ ॥श्री वीतरागाय नमः॥ श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालबतिविरचिताया प्रमेयधोतिकाख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् हिन्दी-गुर्जरभाषानुवादसहितम् ॥श्री जीवाभिगमसूत्रम्॥ (द्वितीयो भागः) तृतीया पतिपत्तिः प्रारभ्यतेद्वितीया प्रतिपत्ति निरूपिता ततोऽवसरप्राप्तां तृतीया प्रतिपत्ति निरूपयति तत्र नैरयिकादि चतुर्विधसंसारसमापन्नकजीवेषु प्रथमं नैरयिकप्ररूपणामाह'तत्थ णं जे ते' इत्यादि। मूलम्-तत्थ णं जे ते एवमाहंसु चउविहा संसारसमावण्णगा जीवा ते एवमाहंसु तं जहा-णेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा ।। से किं तं जेरइया ? णेरइया सत्तविहा पन्नत्ता तं जहा-पढम पुढवी जेरइया दोच्चा पुढवीणेरइया, तच्चा पुढवी णेरइया, चउत्थी पुढवीणेरइया, पंचमीपुढवीणेरइया, छट्री पुढवी णेरड्या सत्तमी पुढवी नेरइया। पढमाणं भंते ! पुढवी किं नामा किं गोता पन्नत्ता ? गोयमा ! णामेणं धम्मा गोत्तेणं रयणप्पभा। दोच्चा णं भंते ! पुढवी किं नामा किं गोता पन्नत्ता? गोयमा! णामेणं वंसा गोत्तेणं सकरप्पभा। एवं एएणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, णामाणि इमाणि सेला तच्चा, अंजणा चउत्थी रिट्ठा पंचमी मघा छटी माघवई सत्तमा जाव तमतमा गोत्तेणं पन्नत्ता ॥ इमाणं भंते ! रयणप्पभा पुढवी केवइया बाहल्लेणं पन्नत्ता ? गोयमा ! इमाणं रयणप्पभा पुढवी असीउत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्ले णं पण्णत्ता। एवं एएणं अभिलावेणं इमा गाहा-अणुगंतव्वा जी. १ જીવાભિગમસૂત્ર

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