Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 11
________________ श्री जिवाभिगमसूत्र भाग दूसरे की विषयानुक्रमणिका अ.नं. विषय तीसरी प्रतिपत्ति उ. १ १ नैरयिक जीवों का निरूपण २ रत्नप्रभा पृथ्वी के भेदों का निरूपण ३ प्रत्येक पृथिवी में रहे हुवे नरकावासों का निरूपण ४ रत्नप्रभा पृथ्वीके खरकांड आदिका एवं अन्य पृथ्वी में रहे हुवे धनोदध्यादि के बाहल्य का निरूपण ५ रत्नप्रभा पृथ्वी के क्षेत्रच्छेद का कथन ६ रत्नप्रभा पृथ्वी के संस्थानका निरूपण ४७-५३ ७ सातों पृथिवीयां लोकको स्पर्शनेवाली है या अलोकको स्पर्श करती है? ५३-६५ ८ सातों पृथ्वी के धनोदधि धनवात, तनुवात के तिर्यग्बाहल्य का निरूपण ६५ - ९३ ९ जीवों की उत्पत्ति का निरूपण ९३-११० पृष्ठाङ्ग २२ नारकों की स्थितिकालका निरूपण २३ नरक में पृथिव्यादि के स्पर्शादिका निरूपण १० प्रति पृथ्वीके विभाग पूर्वक उपरके एवं अधस्तन ११०- १४३ चरमान्त के अन्तर का कथन ११ रत्नप्रभादि पृथ्वीयों के परस्पर में अगली २ पृथिवीवियों को लेकर पूर्व पूर्वकी पृथिवीका बाल्य एवं विस्तार सेतुल्यवादिका निरूपण १४३ - १५१ दूसरा उद्देशा तीसरा उद्देशा २४ नैरयिकों के पुद्गल परिमाणका निरूपण १-१० ११-१७ १७-२३ १७२-१८६ १२ प्रत्येक पृथ्वी में कितने कितने नरकावास होने का कथन १५२-१७१ १३ नरकावासों के संस्थान - आकार का निरूपण १४ नरकावासों के वर्णगन्ध आदिका निरूपण १५ नरकावासों के महत्व - विशालपनेका निरूपण १६ नरकावास किं द्रव्यमय याने किसके बने है ? १७ नारक जीवों की उत्पत्ति का निरूपण १८ प्रत्येक नारक जीवों के संहनन का निरूपण १९ नारक जीवों के उच्छवास आदिका निरूपण २० नारकों के क्षुधा एवं पिपासा आदिका निरूपण २१ नारकों के नरकभव दुःख के अनुभवनका निरूपण જીવાભિગમસૂત્ર २३-३१ ३२-४७ १८६-१९८ १९८-२०७ २०७-२११ २११-२४२ २४२-२५२ २५२-२७० २७०-२८६ २८७=३२७ ३२७-३४१ ३४२-३५८ ३५९ - ३७४

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