________________
कार्य-संपूति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्य जा शक्ति और अधिक विकसित हो ।
इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता ! इनको वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है।
मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा।
भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है।
अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस
आचार्य तुलसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org