Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 127
________________ नवमं अज्झयणं (देवदत्ता ) मिति कट्टु रोयमाणी कंदमाणीग्रो विलवमाणीग्रो जेणेव पुसनंदी राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पूसनंदि रायं एवं वयासी – एवं खलु सामी ! सिरी देवी देवदत्ताए देवीए प्रकाले चेव जीवियाओ ववरोविया ॥ ५६. तए से पूसनंदी राया तासि दासचेडीणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म महया माइसोएणं प्रप्फुण्णे' समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धस त्ति धरणीयसिसव्वंहिं संनिवडिए || ५७. तए णं से पूसनंदी राया मुहुत्तंतरेण ग्रासत्थे समाणे बहूहि राईसर - तलवरमाsबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि सेणावइ - सत्थवाहेहि मित्त'- नाइ नियग-सयणसंबंधि - परियणेण य सद्धि रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सिरीए देवीए महया इडीए नीहरणं करेइ, करेत्ता आसुरुते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे देवदत्तं देवि पुरिसेहिं गिण्हावेइ, एएणं विहाणेणं वज्भं आणवेइ ॥ ५८. तं एवं खलु गोयमा ! देवदत्ता देवी पुरा पोराणाणं दुच्चिष्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ देवदसाए प्रागामिभव-वष्णग-पदं ५६. देवदत्ताणं भंते! देवी इम्रो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ ? कहि उववज्जिहि ? ७६७ १. अप्पुष्णे णं ( क ) ! २. स० पा० - राईसर जाव सत्यवाहेहिं । Jain Education International गोयमा ! असीइं वासाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रणभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहि ' । संसारो [ तहेव जाव' ? ] वणसई । तो अनंत उव्वट्टित्ता गंगपुरे नयरे हंसत्ताए पच्चायाहिइ । सेणं तत्थ साउणिएहि वहिए समाणे तत्थेव गंगपुरे नयरे सेट्ठिकुलंसि उववज्जि eिs | बोही । सोहम्मे । महाविदेहे वासे सिज्झिहि ॥ निवखेव पदं ६०. “एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स श्रयमद्वे पण्णत्ते । - त्ति बेमि ॥ ° ३. सं० पा०--मित्त जाव परियणेण । ४. ततेणं (ख, घ); तेणं ( क्व ) । ५. सं० पा० - पोराणाणं जाव विहर।। o ६. उबवण्णे (क, ख, ग, घ ) । ७. वि० १।१।७० । ८. सं० पा०-- निक्खेवो । २. ना० १1१1७1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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