Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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संक्षिप्त - पाठ
अंतिए जाव पव्वयामि
अंतेउरे य जाव अभोववण्णे
अगडे वा जाव सागरे
अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे अग्घेणं जाव आसणेणं
परिशिष्ट - १
संक्षिप्त-पाठ, पूर्त स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकाओ
अन्वणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे
अज्जग जाव परिभाएत्तए
अज्जाओ तहेव भणति तहेव साविया जाया तव चिता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति अज्झत्थिए
अथिए किमपणे जाव वियंभइ अज्झथिए जाव समुपज्जित्था
अज्झत्थिय जाव जाणित्ता
अट्टदुहट्टवसट्टमाणस गए जाव रयण
अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि
अट्ठाई जाव नो वागरेइ
अट्ठाई जाव वागरेइ
ग्राहियं महानंदीसरं जामेव
दिसं पाउ जाव पडिगए
अड्ढा जाव अपरिभूया
अड्डा जाव भत्तपाणा
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पूर्त-स्थल
२११।२५
* १११६१४१
१८ १५४
१।१।१११
१।१६।१६७
१३२७६
१२६५
११६६८-१०४
१८७६
१।१६।२७२
१।१६।११८, २८५,२/१३८
१११६।२८६
१३१।१५५
१।१।५३,५६,१५४, १५५, १६६,२०४,२०५;
१।२।१२,७१,१।५।११८,१२४; १।७।२५;
२८१,२
१५५६६
११५६६
श८२२६
१५/७
१।३१८
पूर्ति आधार-स्थल १।१।१०१
१ १६ २८
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१८१५४
१।१।१११
१।१६ १८६
ओ०
सू० २
१।१।११०
१।१४१४४-५०
१।११४८
१११६।२७२
१११४८
११११४८
१।१।१५४
२२१,२
११५२६६
११५१६६
१८२२४
ओ० सू० १४१
ओ० सू० १४१
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