Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
समाणा जाव चिट्ठति समाणी जाव विहरितए समोवइए जान निसीइसा
समोसरणं
सम्मज्जिवलितं जाव सुगंध वरगंधियं
सम्मज्जिवलितं सुगंध जाव कलिये सम्माड जान पडिविसज्जेइ
सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्ख इ सरिसगं जाव गुणोवत्रेयं
सरिसियाओ जाव सगणस्स पव्वइस्ससि
सब्वओ जाय करेमाणा
सव्वं तं चैव आभरणं
सम्बन्ईए जान निग्धोसनाइयरवेणं सासु जाव रज्जपुराचितए सहइ बाब अहियासेद
सहजायया जाय समेच्या
सहियाणं जाव पुण्वरता०
साइमं जाव परिभाएमाणी सामदंड०
साल पूर्ण जाव नेहावगाढेणं
सालय जान आहारेसि
सालइयं जाव गोबेड
सालइयं जाव नेहावगाढं
सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स
सालइयस्स जाव एगंभि
साहरह जब बोलत
सिंगारा जाव कुसला
सिंगारागारनारूबेसाओ जाव कुसलाओ
सिंघाडग०
सिंघाड जान पहे तिचा जाब बहुजणो
सिघाडा जान महया सिक्लावइए जान पडिवण्ण सिम्झिहिर जान मंत
Jain Education International
२५
१।१५।१०
१२ १७
१।१६:२२७,२२८
१२५६५
१।१।३३
१।३।६
११६.३००
१।१।१५०
११६१२०
११.१०६
१।१६।२३
१२५/३०-३२
१/१/३३
१।१४।५६
१।११:३
११०३१०,११
१।५।११८
१०१६/६३
१८:४५ १|१४|४
१/१६/२५,२६
१।१६०१६
१।१६०८
१०१६ १६,१९,२०
१।१६।२२
१।१६ १९
१५१२
१।१।१३६
१।१:१३५
१।५।५३
१।३।३३:१/१३/२६; १।१६।१५३:१।१८१६
११७१४१; १८६/२००; १।१३ २६
१।१।१५
१.१३/३६
१।१५।२१
For Private & Personal Use Only
१४१५६ १।२।१७
१११६१६७,११८
१ १/४ '१।१।२२
१।११२२
१।१४।१६
१।१।१४६
११६१४१
१११११०८
१।१६।२३ १०१।१४५-१४० ओ० सू० ६७
१।१४५६ १।१।१६
१।१११५
१२३४६,७
१।३।७
१।१६/६२
१११।१६
१/१६/५
१११६/१६
१।१६।८
१/१६/८
१११६१८
१।१६।१६
१८४८
१।१।१३४
१।१।१३४
१:१।३३
१।१।३३
१।५१५३
ओ० सू० ५२
उवा० ११४५
१।१।२१२
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195