Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 170
________________ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नस्थ सखिणियाई जाव वत्थाई सगज्जिया जाव पाउस सिरी सज्जइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सण जाव गहिया समद्ध जाव पहरणा सणद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तद्रु जाव उप्पयद सततलाई जान अरहन्तगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्सेय एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अजम्मरस सत्यवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधा सफरिसर सद्दहति जाव रोएंति सहावे जाय जेणेव सहावे जाव तं सदावेद जान तब पहारेत्य सदावेद जाव पहारेत्य सहावेह जाव सहावेति सद्देणं जाव अम्हे गंधे जाव भुजमाणे समणस्स जाव पव्वइस ए समणस्स जान पयस्स समणाउसो जाय पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाब माणूस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं सगणाणं जाव बीईवइस्सइ सममाणं जाव साबियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जड समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० Jain Education International २४ १।१६।१५७ १।५।२५ १८२०३ १।१२६४ १।१५/१६ १।१६।२४८ |१|१६|१३४; १।१८/३५ १।१६।२५१ १।१६:२३६. १२६।३७ ११८२७७ २७ १,२ ११११६ १।१६०३१ ४१।१७/२ १५२६ १।१५।१३ १८१६,१०० ११७१० १२६/११२,११३ १८१५५,१५६ १।१:१३९ १:३।१९ १।१।१०७ १|१|१०८, ११२ ११७/३५,४३ १|१०|५; १।१८/४८ १।१९।४२,४७ १।६।५३ ११५।११८ १।२३३३४ १२/१७/३६ १/८/२०० १।१६।१४० For Private & Personal Use Only १८५७ १।५।२४ १२८७६ १२१५६ १/३/२४ १२।३२ ११२/३२ १२/३२ १।२/३२ १२६ ३६ १२८/७३ २।२।१,२ ओ० सू० ८२ १।१६:३१ १।१७/२२ ओ० सू० १५ १।१।१०१ ११८६२,६३ 81019,0,€ १८६६,१०० ११८१६,१०० १।१।१३८ १२३१६ १।१।१०४ १।१।१०६ ११७/२७ १।३।२४ tien १।५।११७ १२२७६ १।२२७६ १८/१९६, १६७ ओ० सू० ६३ www.jainelibrary.org

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