Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 138
________________ ८०८ विवागसुयं अज्झत्थियं जाव' वियाणित्ता पुव्वाणुपुवि 'चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे नयरे जेणेव पुप्फकरंडयउज्जाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययण तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं प्रोग्ग योगिण्डित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे बिहरह। परिसा राया निग्गए। ३३. तए ण तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स त महया' जणसई वा जाव जणसण्णिवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमयारूवे अज्झथिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं जहा जमाली तहा निम्गयो । धम्मो कहियो । परिसा राया पडिगया ।। ३४. तए णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवरो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु जहा महो तहा अम्मापियरो आपुच्छइ । निक्खमणाभिसेग्रो तहेव जाव' अणगार जाए इरियासमिए' जाव' गुत्तवंभयारी ।। सुबाहुकुमारस्स प्रागामिभव-वण्णग-पदं ३५. तए णं से सुवाहू अणगारे समणस्स भगवनो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता वहूहि चउत्थछ8मतवोवहाहि अप्पाण' भावेत्ता, बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सढि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता आलोइयपडिक्कत समाहिपत्त कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे ॥ ३६. से णं तो देवलोगाग्रो आउक्खएण भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ, केवलं बोहि बुज्झिहिइ, तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं ° पव्वइस्सइ । से णं तत्थ बहूई वासाइं सामण्णं पाउणिहिइ । आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालगए सणंकूमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहि । से णं तारो माणुस्सं, पव्वज्जा, वंभलोए। माणुस्सं, महासुक्के ! माणुस्सं, प्राणए । माणुस्सं, पारणे। माणुस्सं सव्वट्ठसिद्धे । से गं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता महाविदेहे वासे जाइं कुलाई भवंति अड्डाई -..-- - - - - -- १. वि० २११३१॥ ६. रियासमिए (क)। २. सं० पा०--पुवाणुपुस्वि जाव दूइज्जमाणे। ७. वि० १५१०७० । ३. सं० पा०-तं मया जहा पढमं तहा। ८. अत्ताण (ख)। ४. भ० ६१५८ । ६. सं० पा०- भवित्ता जाव पव्वइस्सइ। ५. ना० १११०१-१५१ । १०. उववण्णे (क, ख, ग, घ)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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