Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 64
________________ ७३४ विवागसु नमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अम्भणुण्णाए समाणे छक्मणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्च-नीय मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए प्रत्तिए । हासुहं देवापिया ! मा पडिबंधं ॥ १४. तएण भगवं गोयमे समणेण भगवया महावीरेण ग्रब्भणुष्णाए समाणे समणस्स भगवन महावीरस्स प्रतियाम्रो दुइपलासाश्रो उज्जाणाम्रो पडिनिक्खमइ, पडनिमित्ता तुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरोरियं सोहेमाणे- सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-तीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए माणे जेणेव रायमग्गे तेणेव प्रगाढे । तत्थ बहवे हत्यो पासइ - - सण्णद्ध - बद्धवम्मिय-गुडिए उप्पीलियकच्छे उद्दामियघंटे नाणामणिरयण - विविह-गवेज्जउत्तरकचुइज्जे पडिकप्पिए भयपडागवरपंचामेल-आरूढहत्था रोहे गहियाउहप्पहरणे | अण्णेय तत्थ बहवे आसे पासइ - सण्णद्ध - बद्धवम्मिय-गुडिए ग्राविद्धगुडे ओसारियपक्खरे उत्तरकंचुइय-प्रोचूलामुहचंडाघर' चामर थासग परिमंडियकडीए आरूढप्रसारोहे गहियाउहप्पहरणे | प्रणेय तत्थ बहवे पुरिसे पासइ सण्णद्ध - बद्धवम्मियकवए उप्पी लियस रासणपट्टीए पिवेज्जे विमलवरवद्ध - चिधपट्टे गहियाउहप्पहरणे | Jain Education International तेसि च णं पुरिसाणं मज्झगयं एवं पुरिसं पासइ अवप्रोडयबंधणं उक्त्ति - कण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्भ - करकडि जुयनियच्छं कंठेगुणरत्त-मल्लदामं चुण्णगुंडियगातं चुण्णयं वज्झषाणपीयं तिल-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमसाई खावियंत पावं खक्खरसएहिं हम्ममाणं अणेगनर-नारी- संपरिवुडं चच्चरेचच्चरे खंडपडहएणं उग्घोसिज्जमाणं इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं सुणेइ' - नो खलु देवाणुप्पिया ! उज्भियगस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ, अप्पणी से सयाई कम्माई अवरज्भंति ॥ १५. तए णं भगवओो गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता प्रयमेयारूवे ग्रज्झथिए चितिए पिए पत्थि मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अहो णं इमे पुरिसे' पुरा पोराणाणं दुच्चिरणाणं दुष्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं O १. चूला ० ( ख ) | २. विद्धि (क, ख, ग ) ! ३. उक्खत्त (क, ख, ग ); उक्त्त (घ ) | ४. बद्ध (क, ख ) 1 ० ५. कक्खरग° (क, ग ) ; कक्कर (ख, घ) 1 ६. पडिसणे ( क्व ) | ७. केयी (क, घ ) । ८. सं० पा० - पुरिसे जाव निरयपडिरूविय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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