Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 80
________________ ७५० विवागसुयं ३३. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए जाव' परिवडइ ॥ ३४. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुक्कवालभावे यावि होत्था । 'अट्ट दारियानो जाव अट्ठरो दारो । उप्पि भुंजइ" ।। ३५. तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते ।। ३६. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहि चोरसएहि सद्धि संपरिवुडे रोयमाण कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्डीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूई लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, करेत्ता केणइ कालेण अप्पसोए जाए यावि होत्था ॥ ३७. तए णं ताई पंच चोरसयाई अण्णया कयाइ प्रभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेगावइत्ताए अभिसिंचति ।। ३८. तए णं से अभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स रण्णो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पाय गिण्हइ ।।। ३६. तए णं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा बहुगामघायणाहिं' ताविया समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवाणुप्पिया ! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरिल्लं जणवयं बहूहि गामघाएहिं जाव निद्धणं करेमाणे विहरइ। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो एयभट्ट विण्णवित्तए । ४०. तए णं ते जाणवया पुरिसा एयमढें अण्णमण्णणं' पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता महत्थं महग्ध महरिहं रायारिहं पाहुडं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे तेणेव उवागया" महब्बलस्स रण्णो तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेति, .- - - ---- १. वि० १।२।४६ । मिति, 'उप्पि भुजई' त्ति अस्यायमर्थः-- २. 'अदारियाओं' त्ति, अस्यायमर्थ:-'तए 'तए णं से प्रभग्गसेणे कूमारे उपि पासायण तस्स अभरगसेणस्स कुमारस्स वरगए फुडमाणेहि मुयगमथएहि वरतरुणिअम्मापियरो अभग्गसेणं कुमारं सोहणंसि संप उत्तेहि बत्तीसइबद्धहि नाडएहिं उवगिज्ज माणे विउले माणसए कामभोगे पच्चणभवतिहिकरणणक्खत्तमुत्तसि अट्टहिं दारयाहिं माणे विहरई' त्ति (व)। सद्धि एगदिवमेण पाणि गिहाविसु' त्ति, ३. ४ (क)। यावत्करणादिदं दृश्यं-'तए ण तस्स ४. वि० ११३१७-६ । अभय सेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो इम ५. घायावणाहिं (ख, ग, घ)। एयारूवं पीईदाणं दलयति' ति 'अटुओं ६. तासिता (क)। दामो' त्ति अष्टपरिमाणमस्येति अष्टको ७. वि० ११३८ । दायो --दानं वाच्य इति शेषः, स चैवम्'अट्र हिरण कोडीओ अट्र सूवष्णकोडीओ' ८. निवायत्तए (क), निवएतए (ग)। इत्यादि यावत् 'अट्ठ पेसणकारियाओ अण्णं ६. अण्णोण्णं (ग)। च विपुलधणकणगरयणमणिमोत्तियसंख- १०. उवागया जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागया सिलप्पवालरत्तरयणमाइयं संतसारसावएज्ज' (ख, ग, घ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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