Book Title: Adhyatma Ke Zarokhe Se
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 147
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org माने परन्तु एक सार्वकालिक सत्य यही है कि अपनी आत्मा से बड़ा, अपनी ही आत्मा से श्रेष्ठ कोई और नहीं है । जो आत्मा से जुड़ा है वही अनुपम है, वही अद्वितीय है, वह अप्रतिम है। आत्म प्रतीति ही अंततः जीवन उच्चता ग्रहण करता है । उपासकदशांग सूत्र में उल्लेख है - श्रमणोपासक आनंद अपने ही स्वरूप की ओर मुड़ चुका था । आनंद ने उस सूत्र को भी जान लिया था कि 'आत्मा से आत्मा को देखो' यह धर्माचरण का प्रधान सूत्र है । धर्म की स्पर्शता से मनुष्य का जीवन सफलता पा जाता है । आत्मा के द्वारा तप, त्याग, संयम की तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना से प्रबल हुई आत्म-शक्ति, कर्म-शक्ति को परास्त कर देती है । यह ठीक है कि किसी प्रकार की गति करने के लिए आत्म-शक्ति पर निर्भर है, पर यह भी तथ्य है कि शरीर की कोई भी गति आत्मा के अभाव में संभव ही नहीं है । मूल परख आत्मा की ही हो सकती है। आत्मा, शरीर से बहुत ही आगे की वस्तु है । ज्ञान, आत्मा का निजगुण है । आत्मा से ज्ञान का जुड़ाव है, तभी तो वह अजर अमर है और इसीलिए आत्मा है चिर नवीन, चिर युवा । आत्मा में हर अवस्था में संभवतः इसीलिए परमात्मा की दिव्यता स्थित रहती है । संयम आत्मा की परिणति है, यह शुद्धतम परिणति है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्ट | आत्मा अनंत शक्तिमान है । आत्मा को विकृति देने में जो संज्ञा है, उसे मोहनीय कहते हैं । आत्मशक्ति का प्रतिरोध करनेवाला कर्म है, अंतराय | जो आत्मा की ज्ञानशक्ति का निरोध करता है ज्ञानावरणीय कर्म है और जो आत्मा की दर्शनशक्ति को आच्छादित करता है वह दर्शनावरणीय कर्म है । पदार्थों के मिलने की आशा हों, वे न मिल सके तो अंतराय कर्म होता है । आत्मा का गुण कर्म नहीं है । कर्म आत्मा के लिए आवरण तथा गुणों का विघातक है। आत्मा में अनंत सामर्थ्य है । उसका विघातक, विरोध कर्म तब बनता है, जब आत्मा के साथ शरीर हो । कहा भी है 146 — शुद्धतम आत्मा अनन्त शक्तिमंत है, आत्मा से जुड़े वही श्रीमन्त है । आत्मा की अवहेलना उचित नहीं, आत्मा में स्थित रहे वह जीवन्त है ॥ आत्मा सहनन तथा साधना से विशिष्टता पाती है । अंतराय कर्म के क्षय हो अध्यात्म के झरोखे से For Private And Personal Use Only -

Loading...

Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194