________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
साधना की दृढ़ता तथा उत्कृष्टता तब तक आत्मा को गुणस्थानों की उच्चतर श्रेणियों में चढ़ाती रहती है, जिसके अंतिम परिणाम स्वरूप उस कर्म-शत्रुओं पर विजय की आनंदानुभूति होती है । वह अरिहंत बन जाती है आत्मा। ___ आत्म विकास की क्रमिक अवस्थाओं, गुणस्थानों को जो भलीभांति समझ लेता है, वही आध्यात्मिक समर के मर्म को समझता जाता है । आत्मिक शक्तियों में आविर्भाव की, उनके शुद्ध कार्यरूप में परिणत होते रहने की तरतम भावापन्न अवस्थाएं ही गुणस्थान है। आत्मा की विकासयात्रा के सारे पड़ाव, अविकास से विकास की ओर चौदह गुणस्थानों में देखे जा सकते हैं तथा प्रतिपल गुण स्थान कौनसा है इसका मूल्यांकन किया जा सकता है। आत्मविकास के सोपान गुणस्थानों का यह सिद्धान्त इस दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण है तथा जो सद्विवेक एवं सद्प्रवृत्ति के साथ नीचे से ऊपर के सोपानों पर अपने चरण बढ़ाते रहते हैं वे, अन्ततोगत्वा अपने जीवन के चरम लक्ष्य को अवश्य ही उपलब्ध कर लेते हैं।
166 - अध्यात्म के झरोखे से
For Private And Personal Use Only